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Friday, September 26, 2014

निठारी कांड की पड़ताल: जिद्द और जुनून की रोमांचक दास्तां

निठारी के कथित नर पिशाच सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा जब टली तो मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। इस दौरान उसकी मां ने उससे मेरठ जेल में मुलाकात की। पहली बार उसके परिवार की तरफ से उसे फंसाए जाने की बात कही गई। निठारी में इस घिनौने कांड के खुलासे से लेकर कोली की फांसी की सजा के एलान के बीच कई सवाल खड़े हुए। मुख्य आरोपी को साक्ष्यों के अभाव में बरी किए जाने और कोली द्वारा सारे गुनाह मान लेने जैसी बातों ने मन में संशय पैदा कर दिया।
नोएडा में निठारी के नर पिशाच की शिकार ज्योति का भाई अर्जुन
सच्चाई जानने के लिए हम निकल नोएडा के निठारी गांव पड़े, जहां बच्चों और महिलाओं के साथ खूनी खेल खेला गया था। यहां पीड़ित परिवारों और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत के बाद कई तथ्य सामने आए। इसकी पड़ताल कोली के गांव गए बिना नहीं हो सकती थी। इसलिए हमने कोली के अल्मोड़ा स्थित गांव मंगरूखाल जाने का निश्चय किया।

हम दिल्ली से निकल पड़े। कुछ भी पता नहीं था कि क्या होने वाला है। मन में मुख्य गुनाहगार के छूटने की कसक और उसे फांसी पर चढ़ाए जाने की आशा थी। हम दिल्ली से कोली के गांव मंगरूखाल की पहाड़ी के नीचे पहुंचे। वहां से कई किमी उपर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ाई करनी थी। हम निकल पड़े। हर पांच मिनट बाद सांस फूल जाती। प्यास लगती। किसी भी तरह दुर्गम रास्तों से होते हुए हम गांव में पहुंचे। वहां अजीब परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मुझ अजनबी को देख गांव के लोग कन्नी काटने लगे।

किसी तरह से भाषाई (गढ़वाली) समस्या से जूझते हुए कोली के घर तक पहुंचा। उसकी मां देखते ही भड़क गईं। चिल्लाते हुए बोलीं- भाग जाओ, तुम लोगों की वजह से मेरा बेटा मर रहा है। गांव वाले भी कुछ सुनने को तैयार न थे। दो घंटे की कोशिश के बाद किसी तरह कोली की मौसेरी बहन समझने को तैयार हुई। फिर उसने कोली की मां को समझाया। फिर क्या था...शुरू हो गई बातचीत।
मंगरूखाल में फांसी की सजा पाए सुरेंद्र कोली की मां कुंती देवी

हम लगातार पांच घंटे बात करते रहे। गांव में टहलते रहे। उसी दौरान प्रधान भी आ गए। उन्होंने पहले दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन थोड़ी देर की बात के बाद वह भी बदल चुके थे। उनका कहना था कि कोली की वजह से पूरा गांव शर्मसार है। बदनामी के दंश झेल रहा है। पर वे चाहते हैं कि पहले पंढ़ेर को फांसी हो। इसी दौरान दो नए लोग मेरा पीछा करते नजर आए। मुझे शक हुआ। लोगों ने भी शक जताया कि ये लोग पंढ़ेर के आदमी हो सकते हैं। आए दिन गांव में नए लोग दिखाई देते रहते हैं; और कोली के वहां आने वालों पर नजर रखते हैं।

जब मैं गांव से निकलने लगा तो मुझे अकेले जाने से मना कर दिया गया। शाम ढल रही थी। मौसम खराब हो रहा था। गांव के तीन-चार लोग मुझे नीचे गाड़ी छोड़ने आए। उन्होंने कहा कि जब तक आप तीन-चार किमी आगे तक नहीं चले जाएंगे हम लोग यहीं डटे हैं। इस तरह हम वहां से दिल्ली की तरफ रवाना हुए। मन में आज की संतुष्टि और कल की बेचैनी थी। पर एक खतरे से बचने के बाद दूसरा खतरा तैयार था।

मंगरूखाल में सुरेंद्र कोली की मौसेरी बहन श्यामा देवी
मौसम खराब होता जा रहा था। हम मैदान से करीब 300 किमी दूर ऊंचाई पर थे। पहाड़ी में भयंकर बारिश-आंधी का सामना कर रहे थे। नाले-नदी बन चुके थे। रास्ते में पेड़ लोट गए थे। कहीं पानी, तो कहीं पेड़ से रास्ता बंद होता रहा। अंधेरा गहरा चुका था। बारिश की पानी की वजह से कार के शीशे से साफ नहीं दिख रहा था।

पहाड़ी रास्ते पर कब आप नीचे चले जाएं, इसका खतरा दिन में बना रहता है। ऐसे में रात के अंधेरे में वहां चलना जान हथेली पर लेकर चलना था। हमारी मुसीबत यह थी कि हम न तो हर जगह रुक सकते थे, न ही ज्यादा तेज चल सकते थे। जहां रास्ता बंद मिला, वहां रुकना मजबूरी थी। घने जंगल और अंधेरे में पहाड़ी ड्राइवर के भी हाथ-पैर फूल रहे थे।

उसका कहना था कि यहां कब खतरनाक जंगली जानवार सामने आ जाएं, कहा नहीं जा सकता। रास्ते में वैसे भी हिरण, सांभर, भालू, लकड़बग्‍घा टाइप के कई जानवर दिखते जा रहे थे। उनको देख ऐसा लग रहा था कि जंगल के राजा के दर्शन कभी भी हो सकते हैं। वैसे भी वह जिम कॉर्बेट जंगल का एरिया है। ऐसे में आशंका कभी भी सच्चाई में बदल सकती थी। पर कहा गया है न कि जब आप ठान लेते हैं, तो ईश्वर भी आपका साथ देते हैं। हम हर बाधा पार करके आगे बढ़ते रहे। अंतत: अगले दिन सुबह नई मंजिल के करीब पहुंच चुके थे। तीन दिन बीत चुके थे। कई सौ किमी की यात्रा की थकान हावी हो रही थी। तीन दिन से कपड़े तक नहीं बदल पाया था।

चुनौती कोली की पत्नी और भाई को उससे जेल में मिलवाने की थी। डासना जेल के बाहर मेन रोड पर हमारी मुलाकात हुई। उनके मेन वही सवाल था कि आखिरकार मैं क्यूं उनकी मदद कर रहा हूं। मैंने उनको अपने दिल की बात बताई। उसे सुनकर कोली की पत्नी ने कहा कि वह पूरी तरह से हमारी मदद करेगी। वह अपने पति को यूं मरने नहीं देगी। अपने हालात की वजह से वह आठ साल तक सामने नहीं आ सकी थी। हम जेल गए। वहां नंबर आने पर कोली की पत्नी-बच्चे और भाई अंदर चले गए। मैं बाहर खड़ा था। इसी बीच हमने खबर ब्रेक कर दिया।

मुझे नहीं पता था कि हमारे खबर ब्रेक करते ही लोकल मीडिया वहां इतनी जल्दी आ पहुंचेगी। जेल के बाहर मीडिया का जमावड़ा शुरू हो गया। एक रिपोर्टर अपने बॉस से बात करता हुआ नजर आया। वह बोल रहा था- अरे सर, भास्कर वाले फर्जी खबर चला दिए हैं। मैंने कोली के गांव फोन किया था। वे अभी उत्तराखंड से चले ही नहीं हैं। फिर मैं यहां तब तक वेट करूंगा जब तक मुलाकात का सिलसिला चल रहा है। मैं पास में खड़ा मंद-मंद मुस्करता रहा। इसी बीच बुलेट से दो मठाधीश टाइप के जर्नलिस्ट आ गए। वे लोग सीधे जेल में घुस गए। तभी बाहर एक हवलदार आया। उसने आवाज लगाई- सुरेंद्र कोली के घर से कोई आया है क्या? फिर उनक तरफ मुड़ के देखा और बोला- देखो, मैंने कहा था न कि नहीं आए हैं।

अपनी पत्नी शांति देवी के साथ सुरेंद्र कोली और उसकी बच्ची
दरअसल, मीडिया से बचाने के लिए हवलदार ने झूठ बोल दिया। मैं खुश हो गया। क्योंकि मैं भी नहीं चाहता था कि किसी और के सामने वे लोग आएं। इस बीच मेरा दिल धक-धक करता रहा। डर सता रहा था कि कहीं कोली की फैमली की पहचान उजागर न हो जाए। उनकी चिंता भी इसी बात की थी। उनका कहना था कि पहचान उजागर होने के बाद उनको नौकरी तक नहीं मिलेगी। खैर, मुलाकात के दो घंटे हो चुके थे।

उनका इतनी देर तक रहना मेरे लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था। बाहर मीडिया और अंदर उनका इतनी देर तक रहना। तभी सभी लोग गेट से बाहर निकलते दिखाई दिए। अब चुनौती उनको मीडिया की नजरों से बचाए रखते हुए निकाल ले जाना था। मैंने उनको इशारा किया कि जल्दी निकलो। वे लोग तेजी से गाड़ी की तरफ बढ़े। इसी बीच एक मठाधीश टाइप स्ट्रिंगर की नजर उन पर पड़ गई। उसे शक हो गया। वह भी उनके साथ तेजी से आगे बढ़ने लगा। मैंने कोली की फैमली को गाड़ी में बैठा दिया। तब तक वह मेरे पास आ गया।

उसने पूछा- क्या आप सुरेंद्र कोली की फैमली से हैं? मैंने तुरंत कहा- अरे, नहीं हम तो विधायक जी से मिलने आए थे। उसने सॉरी बोला और वापस चला गया। अब जाकर मेरी सांस में सांस आई। मैं खुश था। मैंने ड्राइवर से बोला कि जितनी तेज गाड़ी चला सकते हो चलाकर यहां से निकल लो। इस तरह मैं अपने वादे के मुताबिक, उनकी पहचान छिपाने में सफल रहा।

इसके बाद इनको लेकर ऑफिस गया। वहां हमने कुछ देर रिलैक्स किया। उसके बाद शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला। इस दौरान कोली की पत्नी ने अपने पति से बातचीत के आधार पर कई खुलासे किए। पहली बार कोली की बात उसकी पत्नी के माध्यम से बाहर आई। इन बातों और तथ्यों को मैंने स्टोरी और वीडियो के माध्यम से आप सभी के सामने पेश किया है। आशा है कि पंढेर जैसे शातिर नर पिशाच को सजा जरूर होगी।

निठारी से लेकर मंगरूखाल और डासना जेल से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट...

Tuesday, September 16, 2014

विश्वास बोले- BIGG BOSS के लिए होती है 'डील'

टीवी रियलटी शो बिग बॉस में सब कुछ पहले से फिक्स होता है। प्रतियोगी अपने मन मुताबिक कमरे में रह सकता है। अपने साथ डायरी-पेन रख सकता है। एंट्री से पहले अपने हिसाब से शो के नियम-कानून भी बदलवा सकता है। 'आप' नेता और कवि डॉ. कुमार विश्वास का कहना है कि उनको शो में शामिल होने का जब तीसरी बार न्योता मिला, तो उन्होंने कुछ शर्तें रखीं। इनमें से कुछ को बिग बॉस रियलिटी शो की निर्माता कंपनी एंडेमॉल और कलर्स टीवी ने मान लिया, लेकिन बात जब पैसों पर आई तो कंपनी ने किनारा कर लिया।

dainikbhaskar.com से खास बातचीत में डॉ. कुमार विश्वास ने बताया कि उन्हें इस शो में शामिल होने के लिए बीते तीन साल से ऑफर आ रहे थे, पर वह मना कर देते थे। इस बार न्योता मिलने पर उन्होंने कुछ शर्तों के साथ जाने का मन बनाया। एंडेमॉल और कलर्स के सामने अपनी शर्तें रखीं, जिसे मान लिया गया। लेकिन जब कुमार ने वार विडोज फंड (शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं के लिए फंड) के नाम पर 21 करोड़ रुपए मांगा तो कंपनी ने किनारा कर लिया। इस वजह से वह बिग बॉस का हिस्सा नहीं बन सके।

घर में अलग से रूम देना किया स्वीकार 

बिग बॉस के घर का नियम होता है कि सभी सदस्य एक साथ खुले में रहते और सोते हैं। शो में कुमार विश्वास को प्रतिभागी बनाने के लिए बिग बॉस ने अपना यह नियम भी तोड़ने की बात मान ली। दरअसल, कुमार विश्वास का कहना था कि वह खुले में नहीं सो सकते हैं। इस शर्त को मानते हुए इसका तोड़ भी निकाल लिया गया। कंपनी की तरफ से कहा गया कि उन्हें पहले प्रतिभागी के रूप में शो इंट्री करा दी जाएगी। चूंकि बिग बॉस के नियम के हिसाब से पहले प्रतियोगी को रूम मिलता है; और इस तरह उनको रूम मिल जाएगा।

डायरी और पेन रखने की मिली इजाजत

शो में शामिल होने के लिए कुमार विश्वास ने एक और शर्त रख दी। उन्होंने कहा कि वह कवि हैं। उन्हें कविता लिखने के लिए डायरी और पेन चाहिए। पहले उनकी इस शर्त को नहीं माना गया। लेकिन जब कुमार अपनी शर्त पर अड़े तो बिग बॉस में उन्हें डायरी और पेन रखने की इजाजत मिल गई।
 
शो में स्पेशल सेगमेंट देने की हुई पेशकश

कुमार विश्वास की तीसरी शर्त थी कि वह बिग बॉस में सामाजिक मुद्दों पर चर्चा भी चाहते हैं। इसका भी जुगाड़ निकाल लिया गया। कुमार विश्वास मुताबिक, बिग बॉस ने कहा था कि घर में हर दिन एक घंटा सामाजिक मुद्दों पर चर्चा होगी। इस सेगमेंट को 'गुरु ज्ञान' का नाम दिया जाएगा। इसे शो में पांच मिनट 'आज का गुरु ज्ञान' से अलग चलाया जाएगा।    

कुमार विश्वास का कहना था कि 500 करोड़ रुपए शो को बनाने में लगते हैं। 100 से 125 करोड़ रुपए कंपनी शो में एंकरिंग के लिए सलमान को देती है। फिर सैनिकों के विधवाओं के लिए फंड में 21 करोड़ रुपए देने में क्या दिक्कत है? यदि बिग बॉस उनकी इस शर्त को मान लेता है तो उन्हें घर के बाथरूम साफ करने में भी कोई दिक्कत नहीं है। 

कुमार विश्वास ने भाजपा नेता नवजोत सिंह सिद्ध पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वह अमृतसर से सांसद रहते हुए साढ़े तीन करोड़ रुपए लेकर बिग बॉस में चले गए थे। वहां वे बाथरूम साफ करते थे, कहीं किसी को एतराज नहीं था। जनता उनसे ऐसी ही उम्मीद करती है। वह ऐसा कर सकते हैं। वह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होकर कपिल के शो में 'ठोकों ताली', 'और गुरुवर' बोलते रहते हैं।  

कपिल के शो में उन्होंने एक हिरोइन से कहा था कि यदि आप संसद में आ जाओ तो मैं पूरे दिन संसद में रहुंगा। यह बात रिकॉर्डेड है। इसका मतलब है कि उनका संसद में रहना किसी हिरोइन पर निर्भर है। इस पर अपने आप को राष्ट्रवादी बोलने वाले कोई टिप्पणी नहीं करते हैं। उनका राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ऐसी बात बोल रहा है। 

सनी लियोनी के साथ रहने में एतराज

कुमार विश्वास को पोर्न स्टार और पूर्व प्रतिभागी रही सनी लियोनी के साथ बिग बॉस में रहने में एतराज था। साथ ही उन्होंने शो की इस पॉलिसी पर नाखुशी जताई कि पहले से शामिल होने वाले प्रतिभागी के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती है। उन्होंने कहा कि यदि अंदर जाकर पता चले कि कुछ करोड़ रुपए के लिए सनी लियोनी के साथ रहना पड़ेगा और कॉफी या चाय बनाने पर हो रहा है, तो यह कोई इंटरटेनमेंट नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि बिग बॉस के लिए उन्हें काफी बड़ी रकम ऑफर हुई थी, लेकिन रकम ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती है। सम्मान जरूरी होती है। यदि किसी से चार साल का बच्चा पूछे कि सनी लियोनी क्या परफार्म करती हैं? तो कोई जानकर भी नहीं बता सकता है।

ऐसा लगता है कि भारत में कलाकार, संगीतकार और गीतकार नहीं बचे हैं। क्या भारत की हिरोइनों की परंपरा इतनी मलिन और छोटी हो गई है कि एक पोर्न स्टार को हिंदुस्तान में लाकर स्टार बनाना पड़े।

कुमार विश्वास ने dainikbhaskar.com से बातचीत के दौरान फिल्मी स्टारों पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों में सलमान और अमिताभ बच्चन को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कहा कि जब राहुल गांधी का क्रेज होता है तो सब स्टेडियम में उनके बगल में बैठकर मैच देखते हैं। नरेंद्र मोदी का क्रेज होता है तो अहमदाबाद में जाकर पतंग उड़ाने लगता हैं। इस बार उनका इशारा सलमान खान की तरफ था।

अमिताभ बच्चन पर भी निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि वे राजीव गांधी की सरकार में उनके साथ रहते हैं। यूपी में जब मुलायम की सरकार थी तो यूपी का विज्ञापन कर रहे थे। बाद में जब नरेंद्र मोदी का क्रेज बढ़ने लगा तो वह गुजरात में विज्ञापन देने लगे।

उन्होंने कहा कि प्रिति जिंदा के साथ सब काम करना चाहते हैं, पर जब वह एक बड़े रईसजादे के खिलाफ खड़ी होती है तो उनकी मदद के लिए कोई स्टार सामने नहीं आता है। शिर्डी के साईं बाबा के यहां अंगूर सभी चढ़ाने जाते हैं, लेकिन जब साईं की मूर्तियों को उठाकर फेंका जाता है तो सभी चुप हो जाते हैं। कोई भी दामिनी और गुड़िया पर बोलने को राजी नहीं होता है। 

उन्होंने कहा कि भारतीय सेना यदि कसौटी पर कसी जाए तो कभी नहीं चूकती है। जिस कश्मीर में सेना के खिलाफ नारे लगाए गए। जहां उनके ऊपर पत्थर फेंके गए। आज उस कश्मीर की बाढ़ में वे सिपाही अपनी जान हथेली पर लेकर उतरे हुए हैं। भारतीय सेना एकमात्र ऐसा संस्थान बचा है, जिसको जब चुनौती मिलने पर उसे हर हाल में पूरा करती है। बात चाहे उत्तराखंड या जम्म कश्मीर की हो या देश की सीमा की। वह सब कुछ भूलकर अपनी जान न्यौछावर करती है। इसलिए हमारा भी फर्ज बनता है कि हम सभी शहीद सैनिकों के घरवालों के लिए कुछ न कुछ करें।

उन्होंने कहा कि यदि इन शहीदों की विधवाओं के लिए 21 करोड़ रुपए पहुंचते हैं। वह बिग बॉस तो क्या कहीं भी पोछा लगा सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता है। हमारे देश और पड़ोसी मुल्क पीएम की मां के लिए शाल और साड़ी आती- जाती रहती है, लेकिन कफन में लिपटे बेटे आना बंद नहीं होते हैं। नई सरकार आ गई है। इसके बावजूद भी अब तक 30-40 सैनिक बार्डर पर शहीद हो चुके हैं।

 
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