नोएडा में निठारी के नर पिशाच की शिकार ज्योति का भाई अर्जुन |
हम दिल्ली से निकल पड़े। कुछ भी पता नहीं था कि क्या होने वाला है। मन में मुख्य गुनाहगार के छूटने की कसक और उसे फांसी पर चढ़ाए जाने की आशा थी। हम दिल्ली से कोली के गांव मंगरूखाल की पहाड़ी के नीचे पहुंचे। वहां से कई किमी उपर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ाई करनी थी। हम निकल पड़े। हर पांच मिनट बाद सांस फूल जाती। प्यास लगती। किसी भी तरह दुर्गम रास्तों से होते हुए हम गांव में पहुंचे। वहां अजीब परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मुझ अजनबी को देख गांव के लोग कन्नी काटने लगे।
किसी तरह से भाषाई (गढ़वाली) समस्या से जूझते हुए कोली के घर तक पहुंचा। उसकी मां देखते ही भड़क गईं। चिल्लाते हुए बोलीं- भाग जाओ, तुम लोगों की वजह से मेरा बेटा मर रहा है। गांव वाले भी कुछ सुनने को तैयार न थे। दो घंटे की कोशिश के बाद किसी तरह कोली की मौसेरी बहन समझने को तैयार हुई। फिर उसने कोली की मां को समझाया। फिर क्या था...शुरू हो गई बातचीत।
मंगरूखाल में फांसी की सजा पाए सुरेंद्र कोली की मां कुंती देवी |
हम लगातार पांच घंटे बात करते रहे। गांव में टहलते रहे। उसी दौरान प्रधान भी आ गए। उन्होंने पहले दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन थोड़ी देर की बात के बाद वह भी बदल चुके थे। उनका कहना था कि कोली की वजह से पूरा गांव शर्मसार है। बदनामी के दंश झेल रहा है। पर वे चाहते हैं कि पहले पंढ़ेर को फांसी हो। इसी दौरान दो नए लोग मेरा पीछा करते नजर आए। मुझे शक हुआ। लोगों ने भी शक जताया कि ये लोग पंढ़ेर के आदमी हो सकते हैं। आए दिन गांव में नए लोग दिखाई देते रहते हैं; और कोली के वहां आने वालों पर नजर रखते हैं।
जब मैं गांव से निकलने लगा तो मुझे अकेले जाने से मना कर दिया गया। शाम ढल रही थी। मौसम खराब हो रहा था। गांव के तीन-चार लोग मुझे नीचे गाड़ी छोड़ने आए। उन्होंने कहा कि जब तक आप तीन-चार किमी आगे तक नहीं चले जाएंगे हम लोग यहीं डटे हैं। इस तरह हम वहां से दिल्ली की तरफ रवाना हुए। मन में आज की संतुष्टि और कल की बेचैनी थी। पर एक खतरे से बचने के बाद दूसरा खतरा तैयार था।
मंगरूखाल में सुरेंद्र कोली की मौसेरी बहन श्यामा देवी |
पहाड़ी रास्ते पर कब आप नीचे चले जाएं, इसका खतरा दिन में बना रहता है। ऐसे में रात के अंधेरे में वहां चलना जान हथेली पर लेकर चलना था। हमारी मुसीबत यह थी कि हम न तो हर जगह रुक सकते थे, न ही ज्यादा तेज चल सकते थे। जहां रास्ता बंद मिला, वहां रुकना मजबूरी थी। घने जंगल और अंधेरे में पहाड़ी ड्राइवर के भी हाथ-पैर फूल रहे थे।
उसका कहना था कि यहां कब खतरनाक जंगली जानवार सामने आ जाएं, कहा नहीं जा सकता। रास्ते में वैसे भी हिरण, सांभर, भालू, लकड़बग्घा टाइप के कई जानवर दिखते जा रहे थे। उनको देख ऐसा लग रहा था कि जंगल के राजा के दर्शन कभी भी हो सकते हैं। वैसे भी वह जिम कॉर्बेट जंगल का एरिया है। ऐसे में आशंका कभी भी सच्चाई में बदल सकती थी। पर कहा गया है न कि जब आप ठान लेते हैं, तो ईश्वर भी आपका साथ देते हैं। हम हर बाधा पार करके आगे बढ़ते रहे। अंतत: अगले दिन सुबह नई मंजिल के करीब पहुंच चुके थे। तीन दिन बीत चुके थे। कई सौ किमी की यात्रा की थकान हावी हो रही थी। तीन दिन से कपड़े तक नहीं बदल पाया था।
चुनौती कोली की पत्नी और भाई को उससे जेल में मिलवाने की थी। डासना जेल के बाहर मेन रोड पर हमारी मुलाकात हुई। उनके मेन वही सवाल था कि आखिरकार मैं क्यूं उनकी मदद कर रहा हूं। मैंने उनको अपने दिल की बात बताई। उसे सुनकर कोली की पत्नी ने कहा कि वह पूरी तरह से हमारी मदद करेगी। वह अपने पति को यूं मरने नहीं देगी। अपने हालात की वजह से वह आठ साल तक सामने नहीं आ सकी थी। हम जेल गए। वहां नंबर आने पर कोली की पत्नी-बच्चे और भाई अंदर चले गए। मैं बाहर खड़ा था। इसी बीच हमने खबर ब्रेक कर दिया।
मुझे नहीं पता था कि हमारे खबर ब्रेक करते ही लोकल मीडिया वहां इतनी जल्दी आ पहुंचेगी। जेल के बाहर मीडिया का जमावड़ा शुरू हो गया। एक रिपोर्टर अपने बॉस से बात करता हुआ नजर आया। वह बोल रहा था- अरे सर, भास्कर वाले फर्जी खबर चला दिए हैं। मैंने कोली के गांव फोन किया था। वे अभी उत्तराखंड से चले ही नहीं हैं। फिर मैं यहां तब तक वेट करूंगा जब तक मुलाकात का सिलसिला चल रहा है। मैं पास में खड़ा मंद-मंद मुस्करता रहा। इसी बीच बुलेट से दो मठाधीश टाइप के जर्नलिस्ट आ गए। वे लोग सीधे जेल में घुस गए। तभी बाहर एक हवलदार आया। उसने आवाज लगाई- सुरेंद्र कोली के घर से कोई आया है क्या? फिर उनक तरफ मुड़ के देखा और बोला- देखो, मैंने कहा था न कि नहीं आए हैं।
अपनी पत्नी शांति देवी के साथ सुरेंद्र कोली और उसकी बच्ची |
उनका इतनी देर तक रहना मेरे लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था। बाहर मीडिया और अंदर उनका इतनी देर तक रहना। तभी सभी लोग गेट से बाहर निकलते दिखाई दिए। अब चुनौती उनको मीडिया की नजरों से बचाए रखते हुए निकाल ले जाना था। मैंने उनको इशारा किया कि जल्दी निकलो। वे लोग तेजी से गाड़ी की तरफ बढ़े। इसी बीच एक मठाधीश टाइप स्ट्रिंगर की नजर उन पर पड़ गई। उसे शक हो गया। वह भी उनके साथ तेजी से आगे बढ़ने लगा। मैंने कोली की फैमली को गाड़ी में बैठा दिया। तब तक वह मेरे पास आ गया।
उसने पूछा- क्या आप सुरेंद्र कोली की फैमली से हैं? मैंने तुरंत कहा- अरे, नहीं हम तो विधायक जी से मिलने आए थे। उसने सॉरी बोला और वापस चला गया। अब जाकर मेरी सांस में सांस आई। मैं खुश था। मैंने ड्राइवर से बोला कि जितनी तेज गाड़ी चला सकते हो चलाकर यहां से निकल लो। इस तरह मैं अपने वादे के मुताबिक, उनकी पहचान छिपाने में सफल रहा।
इसके बाद इनको लेकर ऑफिस गया। वहां हमने कुछ देर रिलैक्स किया। उसके बाद शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला। इस दौरान कोली की पत्नी ने अपने पति से बातचीत के आधार पर कई खुलासे किए। पहली बार कोली की बात उसकी पत्नी के माध्यम से बाहर आई। इन बातों और तथ्यों को मैंने स्टोरी और वीडियो के माध्यम से आप सभी के सामने पेश किया है। आशा है कि पंढेर जैसे शातिर नर पिशाच को सजा जरूर होगी।
निठारी से लेकर मंगरूखाल और डासना जेल से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट...
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