बाहर निकला एंडरसन का जिन्न, शुरू हुआ तमाशा
भोपाल गैस त्रासदी पर अदालत का फैसला आने के बाद मीडिया में इस पर जोरो से बहस हो रही है। हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं . इसमें वॉरेन एंडरसन और अर्जुन सिंह का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट नाम की जहरीली गैस के रिसाव से पूरे शहर में मौत का तांडव मचाकर 15 हजार से भी अधिक लोगों के हत्या और लाखो लोगो की तबाही के जिम्मेदार इस एंडरसन का जिन्न बाहर आ गया है। फैसले के वक्त जिस शख्स का नाम अदालत ने भी फैसले में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा, आज वह मीडिया के कारण वांटेड हो चुका है।
पर दुख की बात यह कि फैसले पर समीक्षा करके पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय एंडरसन पर यह बहस करना कि- वह किस रंग की गाड़ी में भागा था, उस गाड़ी का नंबर क्या था, उसके जहाज को उड़ाने वाले पायलट कौन थे? कहां तक जायज है।
कहीं ध्यान बांटने की साजिश तो नहीं?
मामले को देखकर एक बार तो यह लगता है कि कहीं भारत में बैठे महेन्द्रा सहित सात अपराधियों से ध्यान हटाने और भारतीय कानून की कमजोरियों पर पर्दा डालने की साजिश तो नहीं रची जा रही है? 25 साल बाद भी गैस पीड़ितों को सही न्याय नहीं मिल पाया है। हवा में जहर घोल कर लोगों को मारने वाले जमानत पर रिहा होकर खुली हवा में सांस ले रहें हैं। लचर भारतीय कानून का फायदा उठाने वाले इन लोगों ने लाखों जिंदगियों के साथ जो घिनौना मजाक किया है, क्या उनको इसकी सजा नहीं मिलनी चाहिए?
त्रासदी का तमाशा
पूरा मामला किसी तमाशे से कम नहीं है। इस नाटक में अभिनेता की भूमिका में भारतीय मीडिया, खलनायक की भूमिका में वॉरेन एंडरसन और प्रमुख पात्रों में तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, डीएम मोती सिंह, एसपी स्वराजपुरी, पायलट द्वय कैप्टन सोढी और हसन अली आदि हैं। तमाशा जारी है। देखिये अंत क्या होता है?
चुप्पी का राज क्या है?
इस पूरे मामले पर तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की चुप्पी से राज और गहराता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने यह कहा है कि यदि वह मुंह खोलेंगे तो राजनीतिक •ाूचाल आ सकता है। पर उनके ट्रस्ट को उस समय 1.5 लाख रुपए बतौर चंदा एंडरसन की कंपनी द्वारा दिए जाने के खुलासे के साथ ही अर्जुन सिंह पर उगंलियां उठने लगी हैं।
अलेक्जेंडर ने किया राजीव की तरफ इशारा
राजीव गांधी के तत्कालिन सचिव पी.सी. अलेक्जेंडर ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि, उस समय राजीव और अर्जुन एक-दूसरे के लगातार संपर्क में थे। इन दोनों ने इस मुद्दे पर बैठक भी की थी। राजीव इस मामले को लेकर काफी परेशान थे। हो सकता है कि उन्होंने एंडरसन को छोड़ने का फैसला लिया हो।
शुरू हुआ राजनीतिक दांव-पेंच
फैसले के साथ ही देश के प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीतिक दांव-पेंच शुरू हो गया है। दोनो एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस के अंदर ही राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारियों को लेकर बहस हो रही है। एक चैनल ने आरटीआई के तहत चुनाव आयोग से भाजपा के चंदे का ब्योरा मांगा, जिसमें भाजपा द्वारा यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण करने वाली कंपनी डाउ केमिकल्स से एक लाख रुपए चंदा लेने का खुलासा हुआ है। इससे साफ पता चलता है कि राजनीति के इस गंदे समुंद्र में कोई भी दूध का धुला नहीं है। कोई देश से अपराधी को भागने में मदद करता है, तो कोई धन के लालच में मामले को दबाने में।
खुद करनी होगी खुद की मदद
पिछले 25 साल से न्याय की आस लगाये लोगों को क्या मिला? उनकी मदद न तो सरकार कर पाई न ही न्यायतंत्र। पर आज भी जहरीली गैस की जलन से तड़प रहे लोगों को भरोसा है। वह भरोसा उनको खुद पर है। उन्हें विश्वास है कि देर ही सही न्याय वो करावाकर रहेगें। दोषियों को उनके किये की सजा जरूर मिलेगी। और उनकी भी गरदन नपेंगी जिन्होंने चाहे-अनचाहे पापियों की मदद की है।
अंत में...
समय ज्यों बीतता, त्यों-त्यों अवस्था घोर होती,
अनय की श्रृंखला बढ़कर कराल कठोर होती।
किसी दिन तब, महाविस्फोट कोई फूटता है,
मनुज ले जान हाथों में दनुज पर टूटता है।
भोपाल गैस त्रासदी पर अदालत का फैसला आने के बाद मीडिया में इस पर जोरो से बहस हो रही है। हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं . इसमें वॉरेन एंडरसन और अर्जुन सिंह का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट नाम की जहरीली गैस के रिसाव से पूरे शहर में मौत का तांडव मचाकर 15 हजार से भी अधिक लोगों के हत्या और लाखो लोगो की तबाही के जिम्मेदार इस एंडरसन का जिन्न बाहर आ गया है। फैसले के वक्त जिस शख्स का नाम अदालत ने भी फैसले में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा, आज वह मीडिया के कारण वांटेड हो चुका है।
पर दुख की बात यह कि फैसले पर समीक्षा करके पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय एंडरसन पर यह बहस करना कि- वह किस रंग की गाड़ी में भागा था, उस गाड़ी का नंबर क्या था, उसके जहाज को उड़ाने वाले पायलट कौन थे? कहां तक जायज है।
कहीं ध्यान बांटने की साजिश तो नहीं?
मामले को देखकर एक बार तो यह लगता है कि कहीं भारत में बैठे महेन्द्रा सहित सात अपराधियों से ध्यान हटाने और भारतीय कानून की कमजोरियों पर पर्दा डालने की साजिश तो नहीं रची जा रही है? 25 साल बाद भी गैस पीड़ितों को सही न्याय नहीं मिल पाया है। हवा में जहर घोल कर लोगों को मारने वाले जमानत पर रिहा होकर खुली हवा में सांस ले रहें हैं। लचर भारतीय कानून का फायदा उठाने वाले इन लोगों ने लाखों जिंदगियों के साथ जो घिनौना मजाक किया है, क्या उनको इसकी सजा नहीं मिलनी चाहिए?
त्रासदी का तमाशा
पूरा मामला किसी तमाशे से कम नहीं है। इस नाटक में अभिनेता की भूमिका में भारतीय मीडिया, खलनायक की भूमिका में वॉरेन एंडरसन और प्रमुख पात्रों में तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, डीएम मोती सिंह, एसपी स्वराजपुरी, पायलट द्वय कैप्टन सोढी और हसन अली आदि हैं। तमाशा जारी है। देखिये अंत क्या होता है?
चुप्पी का राज क्या है?
इस पूरे मामले पर तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की चुप्पी से राज और गहराता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने यह कहा है कि यदि वह मुंह खोलेंगे तो राजनीतिक •ाूचाल आ सकता है। पर उनके ट्रस्ट को उस समय 1.5 लाख रुपए बतौर चंदा एंडरसन की कंपनी द्वारा दिए जाने के खुलासे के साथ ही अर्जुन सिंह पर उगंलियां उठने लगी हैं।
अलेक्जेंडर ने किया राजीव की तरफ इशारा
राजीव गांधी के तत्कालिन सचिव पी.सी. अलेक्जेंडर ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि, उस समय राजीव और अर्जुन एक-दूसरे के लगातार संपर्क में थे। इन दोनों ने इस मुद्दे पर बैठक भी की थी। राजीव इस मामले को लेकर काफी परेशान थे। हो सकता है कि उन्होंने एंडरसन को छोड़ने का फैसला लिया हो।
शुरू हुआ राजनीतिक दांव-पेंच
फैसले के साथ ही देश के प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीतिक दांव-पेंच शुरू हो गया है। दोनो एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस के अंदर ही राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारियों को लेकर बहस हो रही है। एक चैनल ने आरटीआई के तहत चुनाव आयोग से भाजपा के चंदे का ब्योरा मांगा, जिसमें भाजपा द्वारा यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण करने वाली कंपनी डाउ केमिकल्स से एक लाख रुपए चंदा लेने का खुलासा हुआ है। इससे साफ पता चलता है कि राजनीति के इस गंदे समुंद्र में कोई भी दूध का धुला नहीं है। कोई देश से अपराधी को भागने में मदद करता है, तो कोई धन के लालच में मामले को दबाने में।
खुद करनी होगी खुद की मदद
पिछले 25 साल से न्याय की आस लगाये लोगों को क्या मिला? उनकी मदद न तो सरकार कर पाई न ही न्यायतंत्र। पर आज भी जहरीली गैस की जलन से तड़प रहे लोगों को भरोसा है। वह भरोसा उनको खुद पर है। उन्हें विश्वास है कि देर ही सही न्याय वो करावाकर रहेगें। दोषियों को उनके किये की सजा जरूर मिलेगी। और उनकी भी गरदन नपेंगी जिन्होंने चाहे-अनचाहे पापियों की मदद की है।
अंत में...
समय ज्यों बीतता, त्यों-त्यों अवस्था घोर होती,
अनय की श्रृंखला बढ़कर कराल कठोर होती।
किसी दिन तब, महाविस्फोट कोई फूटता है,
मनुज ले जान हाथों में दनुज पर टूटता है।