आज हिंदी दिवस है। अखबार में आए विज्ञापनों को पढ़कर पता चला। कुछ लोगों ने हिंदी की स्थिति पर लेख भी लिखा है। विज्ञापनों में जहां हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दी गई हंै, वहीं लेखों में हिंदी की दयनीय स्थिति पर चिंता प्रकट की गई है। हिंदी की खराब स्थिति के लिए हिंदी भाषी लोग ज्यादा जिम्मेदार हंै। इसकी इबारत तो आजादी के बाद ही लिख दी गई, जब राष्ट्र भाषा हिंदी के विकल्प में अंग्रेजी को रखा गया। अहिंदी भाषी लोग भी हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार नहीं कर सके। वहां हिंदी को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा। हिंदी भाषा को अपने घर में ही महत्व नहीं दिया गया। आज घर में बच्चों को चाचा की बजाए अंकल और पानी की बजाए वॉटर सिखाया जाता है। यदि बच्चे ने गलती से भी चाचा या पानी बोल दिया तो, कहा जाता है- नो-नो वॉटर बोलो। कभी-कभी तो थप्पड़ भी रसीद कर दिया जाता है। बच्चा तो वहीं से हिंदी को हेय की दृष्टि से...