'नौटंकी मत करो' ऐसा बार-बार लोगों को बोलते हुए आपने सुना होगा। पर क्या आपको पता है क्या होती है नौटकी? आइए हम आपको बताते हैं। नौटंकी एक जीवंत, लोकप्रिय और प्रभावशाली लोककला है।
यह कला जन-मानस से जुड़ी है। इस विधा में अभिनय थोड़ा लाउड किया जाता था। ठीक पारसी थियेटर की तरह। विषय कई बार बोल्ड रखे जाते थे, डायलॉग तीखे चुभने वाले होते थे। समयांतर इस विधा में विकृति आ गई औऱ इसे अश्लीलता का भी पर्याय माना जाने लगा।
विद्वानों के मुताबिक, यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ। किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस सट्टक को नाटक का एक भेद माना है, इसके विषय में जयशंकर प्रसाद और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि सट्टक नौटंकी के ढंग के ही एक तमाशे का नाम है।
संगीत प्रधान लोकनाट्य नौटंकी सदियों तक उत्तर भारत में प्रचलित स्वांग और भगत का मिश्रित रूप है। स्वांग और भगत में इस प्रकार घुलमिल गई है कि इसे दोनों से अलग नहीं किया जा सकता। संगीत प्रधान इस लोक नाट्य के नौटंकी नाम के पीछे एक लोक प्रेमकथा प्रचलित है। इसकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश है। हाथरस और कानपुर इसके प्रधान केंद्र है।
हाथरस और कानपुर की नौटंकियों के प्रदर्शन से प्रेरित होकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, मेरठ और बिहार में भी इसका प्रसार हुआ। मेरठ, लखनऊ, मथुरा में भी अलग-अलग शैली की नौटंकी कंपनियों की स्थापना हुई। आज नौटंकी खत्म होती जा रही है, थोड़ा-बहुत जहां बचा है वहां इसका अश्लील पर्याय ही देखने को मिलता है। सरकार की ओर से इसे संरक्षण और प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इस कला के प्रेमी आज भी बीते दिनों की याद करते हैं, जब नौटंकी प्रदर्शन जगह-जगह होते थे। उनका मानना हैं कि, बाहर से उजड़ी है, दिल में बसी है- नौटंकी।
यह कला जन-मानस से जुड़ी है। इस विधा में अभिनय थोड़ा लाउड किया जाता था। ठीक पारसी थियेटर की तरह। विषय कई बार बोल्ड रखे जाते थे, डायलॉग तीखे चुभने वाले होते थे। समयांतर इस विधा में विकृति आ गई औऱ इसे अश्लीलता का भी पर्याय माना जाने लगा।
विद्वानों के मुताबिक, यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ। किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस सट्टक को नाटक का एक भेद माना है, इसके विषय में जयशंकर प्रसाद और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि सट्टक नौटंकी के ढंग के ही एक तमाशे का नाम है।
संगीत प्रधान लोकनाट्य नौटंकी सदियों तक उत्तर भारत में प्रचलित स्वांग और भगत का मिश्रित रूप है। स्वांग और भगत में इस प्रकार घुलमिल गई है कि इसे दोनों से अलग नहीं किया जा सकता। संगीत प्रधान इस लोक नाट्य के नौटंकी नाम के पीछे एक लोक प्रेमकथा प्रचलित है। इसकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश है। हाथरस और कानपुर इसके प्रधान केंद्र है।
हाथरस और कानपुर की नौटंकियों के प्रदर्शन से प्रेरित होकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, मेरठ और बिहार में भी इसका प्रसार हुआ। मेरठ, लखनऊ, मथुरा में भी अलग-अलग शैली की नौटंकी कंपनियों की स्थापना हुई। आज नौटंकी खत्म होती जा रही है, थोड़ा-बहुत जहां बचा है वहां इसका अश्लील पर्याय ही देखने को मिलता है। सरकार की ओर से इसे संरक्षण और प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इस कला के प्रेमी आज भी बीते दिनों की याद करते हैं, जब नौटंकी प्रदर्शन जगह-जगह होते थे। उनका मानना हैं कि, बाहर से उजड़ी है, दिल में बसी है- नौटंकी।
साभार: दैनिक भास्कर डॉट कॉम


4:51 AM
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