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Saturday, December 24, 2011

बज गई रणभेरी, चढ़ गई त्योरियां

बज गई चुनावी रणभेरी चढ़ गईं उनकी त्योरियां... नाचने लगी उनकी आंखें बजने लगे उनके गाल... बढ़ गई गरीबों की पूछ आम आदमी हुआ खास... बहुर गए इनके दिन झोपड़ी में दिखे राजकुमार... खड़ंजें पर चली सैंडिल पगडंडियों पर दौड़ी साइकिल... कीचड़ में खिला कमल हाथ का मिला साथ पर अफसोस... फिर छा जाएगी मायूसी फिर सूनी हो जाएगी झोपड़ी फिर उखड़ जाएंगे खड़ंजें छूट जाएगा हाथ का साथ फिर आम आदमी रह जाएगा 'आम' खास यूं ही बना रहेगा खास (जैसा कि अभी तक का अनुभव रहा ...

Friday, December 16, 2011

औकात

रमेश शापिंग कर रहा था। अचानक उसकी नजर एक महिला से टकराई। दोनों ठिठक गए। वह मोना थी। रमेश को देखते ही वह बोली, 'ओह माई गॉड, रमेश तुम? कैसे हो? इट्स सरप्राइज फॉर मी। इनसे मिलो, ये मेरे हसबैंड सोहन हैं। बहुत बड़ी कंपनी में काम करते हैं।' मोना बोलती जा रही थी, रमेश उसकी बातें गौर से सुन रहा था। इस बीच हैरान सोहन पत्नी की बात बीच में ही काटते हुए बोल पड़ा। सोहन बोला, 'सर...आप...यहां? कोई जरूरत थी तो बता दिया होता, किसी को भी भेज कर सामान मंगवा देता। अब आपको इतनी जहमत उठाने की क्या आवश्यकता थी।' अपनी पत्नी की तरफ तुरंत मुड़ते ही सोहन उत्साहित होकर बोला, 'मोना, ये मेरे बॉस हैं। पांच हजार करोड़ सालाना टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक होते हुए भी सर बहुत...
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