Thursday, August 19, 2010
कॉमन 'वेल्थ' पर डाका !
7:34 AM
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हमारे देश में एक कॉमन (आम) आदमी के पास इतना भी वेल्थ (धन) नहीं है कि वह दो जून रोटी का जुगाड़ करसके। इस अधनंगे कॉमन आदमी के नंगे बच्चे खाने के लिए मोहताज हैं। अधिकांश ने तो स्कूल का मुंह तक नहींदेखा है। खिलाड़ी गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी वेटर और कुली का काम करके पेट पालने पर मजबूर है। ऐसे मेंकॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। हर तरफ लूट-खसोट मची है। नेता हो याअधिकारी, सब अपनी जेब गरम करने में लगे हैं। आए दिन नये-नये घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। खेल सकुशलसमाप्त हो जाएं, इस पर भी संशय बना हुआ है। इन्ही बिन्दुओं को समेटती मुकेश कुमार गजेंद्र की रिपोर्ट।
अपने देश में कोई सरकारी काम बिना भ्रष्टाचार के हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। अब इस भ्रष्टाचार के मकडज़ाल मेंकॉमनवेल्थ खेल भी पूरी तरह जकड़ चुका है। अभी सरकार और विभिन्न खेल समितियां निर्माण कार्य में हो रहीदेरी से उबर भी नहीं पाईं थी कि एक समाचार चैनल और केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के खुलासों ने उनकेरातों की नींद उड़ा दी है। समाचार चैनल ने यह खुलासा किया है कि खेल आयोजन समिति ने ब्रिटेन की एक कंपनीएएम फिल्म्स को हर माह 25 हजार पाउंड का अवैध भुगतान किया है। वहीं आयोग ने 14 प्रोजेक्टों के काम मेंगंभीर गड़बड़ी पाई हैं।
हालांकि, आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी ने एएम फिल्म्स को धन के अवैध हस्तातंरण के आरोपों सेइंकार किया है। उन्होंने कहा कि इस कंपनी का चयन निविदा प्रक्रिया के बाद किया गया था। भुगतान के लिएआवश्यक सभी वित्तीय नियमों का पालन किया और उसके भुगतान पूरी तरह पारदर्शी हैं। इस कथित घोटाले काखुलासा लंदन में भारतीय उप उच्चायुक्त राजेश एन.प्रसाद के ब्रिटिश सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में खेलमंत्रालय को लिखने के बाद हुआ। इसमें कहा गया कि भारत से राष्ट्रमंडल खेल समिति ने ब्रिटेन की एएम फिल्म्सको 25 हजार पाउंड की रकम भेजी है। इसका कोई हिसाब नहीं है। आयोजन समिति के महासचिव ललित भनोट नेइन सभी आरोपों से इंकार करते हुए कहा कि ब्रिटेन की किसी भी कंपनी को अवैध भुगतान नहीं किया गया।भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति के बाद ही सभी भुगतान किए गए।
दूसरी तरफ केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने जिन 14 प्रोजेक्टों के काम में गंभीर गड़बडिय़ां पाई हैं, उनमें से एकप्रोजेक्ट में सीबीआई से एमसीडी अफसरों के खिलाफ करप्शन केस दर्ज करने को कह दिया गया है। आरोप है किगेम्स के लिए स्ट्रीट लाइट्स को अपग्रेड करने के एक प्रोजेक्ट में कुछ एमसीडी अफसरों ने टेंडर जारी करने मेंकरोड़ों रुपये की हेरफेर की।
सरकारी सूत्रों की माने तो सीबीआई को एक शिकायती लेटर भेजा जा चुका है। इसमें कुछ अज्ञात एमसीडीअफसरों के खिलाफ कथित क्रिमिनल साजिश की जांच करने के लिए कहा गया है। सूत्र के मुताबिक, इस प्रोजेक्टके लिए सबसे कम बोली लगाने वाले जिस ठेकेदार को ठेका दिया गया, उसे बाद में कथित रूप से ज्यादा मुनाफाकमाने के लिए आंकड़े बदलने के लिए कह दिया गया। हालांकि, ठेकेदार ने इसमें कुल कितने का मुनाफा बटोरा, यह नहीं पता चल सका है। सूत्रों के मुताबिक, यह 20 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला है। सीवीसी की की रिपोर्टके मुताबिक, 14 प्रोजेक्टों में बड़े पैमाने पर प्रक्रिया संबंधी उल्लंघन पाए गए हैं। इसमें कुल दो हजार करोड़ रुपयेकी हेरफेर का अनुमान है। विपक्ष ने इस केस में न्यायिक जांच की मांग की है।
खेलों से जुड़े इस पूरे घोटाले की खबरों के बीच खेल मंत्री एम. एस. गिल का कहना है कि गेम्स कराना किसी लड़कीकी शादी की तरह है। आखिरी मिनट तक काम और तैयारियां चलती रहती हैं, इसलिए सब कुछ अच्छी तरह होजाएगा।
दाम से भी ज्यादा, दिया गया किराया
कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए किराए पर लिए जा रहे कुछ सामानों का किराया इतना है, जितने में वह सामान ही मिलजाएगा। आयोजन समिति ने 7 लाख की ट्रेडमिल महज 9 लाख 75 हजार रुपए में किराए पर ली है। इसी तरह डेढ़महीने के लिए किराए पर जो कुर्सियां मंगवाई जा रही हैं उनके लिए 8 हजार 378 रुपए प्रति कुर्सी किराया दिया जारहा है। 100 लीटर रेफ्रिजरेटर के लिए 42 हजार 202 रुपए प्रति रेफ्रिजरेटर का भुगतान किया जा रहा है। डीजलपावर के लिए 80 रुपए प्रति यूनिट तक चुकाए जा रहे हैं जबकि मार्केट रेट इसका दसवां हिस्सा भी नहीं है। शेल्टरअंब्रेला के लिए 6 हजार 308 रुपए और टिश्यू रोल्स के लिए 4 हजार 138 रुपए खर्च किए जा रहे हैं।
ये तो एक बानगी भर है, पूरा मामला इससे भी दिलचस्प है। सुरेश कलमाड़ी की अगुवाई वाली आयोजन समिति नेइस तरह की चीजों पर कुल 650 करोड़ रुपए का बजट रखा है। इसके लिए ठेका चार कंपनियों के दिया गया हैजिनमें से तीन में विदेशी साझेदार भी हैं।
दांव पर लगाई इज्जत
कॉमनवेल्थ गेम्स का जिम्मा संभाल रही पांच सरकारी एजेंसियों ने देश की इज्जत दांव पर लगा दी है। देश कीइज्जत दांव पर लगाने वाली पहली सरकारी एजेंसी है दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी)। केन्द्रीय सतर्कताआयोग की खोजी रिपोर्ट के मुताबिक एनडीएमसी ने कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड कायमकिया है। सीवीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एनडीएमसी की 15 योजनाओं में से 12 के कंक्रीट सैम्पल टेस्ट में फेल होगए। जो काम पूरे कर लिए गए हैं उनसे निकाले गए सैम्पल भी टेस्ट में फेल हो गए हैं। सीवीसी के मुताबिकएनडीएमसी ने कहीं भी मापदंड के हिसाब से काम नहीं किया है। ऊपर से एनडीएमसी की फाइलों में हैं सभी टेस्टको सफल बताया गया है। टेस्ट रिकॉर्ड में हेरफेर की गई है। और तो और इन सभी कामों का ठेका ज्य़ादा कीमत परदिया गया।
दूसरी एजेंसी है एमसीडी। इसने तो भ्रष्टाचार का खुलेआम प्रदर्शन किया है। सीवीसी की रिपोर्ट के मुताबिकएमसीडी ने सभी ठेकों का बजट 25 फीसदी बढ़ा दिया। भ्रष्टाचार का पैसा सीधे अधिकारियों की जेब में गया। चाहेअंडरग्राउंड पार्किंग का काम हो या फिर स्ट्रीट स्केपिंग का। एमसीडी ने नियमों के खिलाफ जाकर ज्यादा कीमत परठेके दिए। यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के मामले में तो एमसीडी ने हद ही कर दी है। सीवीसी के मुताबिक बोर्ड ने येफैसला लिया था कि जो काम टेंडर में नहीं दिए गए हैं उनके लिए अलग से ठेका दिया जाए ताकि सरकार कोनुकसान न हो। लेकिन एमसीडी ने उन्हें भी ज्यादा कीमत लगा कर टेंडर में शामिल कर लिया। सीवीसी केमुताबिक इससे सरकार को कम से कम 36 करोड़ रुपए का चूना लगा है।
तीसरी एजेंसी है पीडब्ल्यूडी। सीवीसी के मुताबिक पीडब्ल्यूडी ने ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट के नाम पर सरकार को 3.68 करोड़ रुपए का चूना लगाया। सामान और लेबर की कीमत 36 फीसदी तक बढ़ा दी गई। नाइट शिफ्ट में कामकरवाने के नाम पर कीमतें 25 फीसदी बढ़ा दी गईं, जबकि सरकारी नियमों में इसकी इजाजत नहीं है। कामों कीनिगरानी का जिम्मा दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग को दिया गया था। लेकिन उन्होंने इंस्पेक्शन रिपोर्ट जमाही नहीं करवाई। सीवीसी की मानें तो साफ है कि सरकारी एजेंसियों ने खुलेआम नियम-कानून की धज्जियां उड़ाईं।तीनों एजेंसियों ने डिजाइन टेस्ट करवाना भी जरूरी नहीं समझा। कॉमनवेल्थ गेम्स के काम में न तो देश कीइज्ज़त का ख्याल रखा गया और ना ही नियमों का पालन किया गया। ख्याल रखा गया है तो सिर्फ नेताओं औरअधिकारियों की जेब का।
चौथी एजेंसी है राइट्स। सीवीसी के मुताबिक टेंडर में पत्थरों और टाइल्स की जो कीमत दी गई है उस कीमत केपत्थर इस्तेमाल नहीं किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ठेकेदारों ने सस्ते पत्थरों और टाइल्स का इस्तेमाल किया हैऔर टेंडर पेपर्स में कीमतों को रिवाइज़ भी नहीं किया गया है। बीच के पैसे अधिकारियों और ठेकेदारों की जेब मेंगए। कंक्रीट, एल्यूमीनियम पैनल और ध्वनि प्रदूषण कम करने वाले उपकरण भी सस्ती क्वालिटी के लिए गएजबकि पैसों का भुगतान वल्र्ड क्लास का। टेंडर की शर्तों के मुताबिक जो काम नहीं किए गए, ठेकेदारों से उनकापैसा भी नहीं वसूला गया है। सीवीसी ने सवाल उठाए हैं कि आखिर वो पैसा कहां गया। टेंडर देने में भी भेदभावकिया गया है। 10 करोड़ तक के काम उन ठेकेदारों को दिए गए हैं जो एमसीडी के साथ रजिस्टर्ड हैं जबकि कामकरवाने वाली एजेंसी कोई और है। साफ है कि सरकारी एजेंसियों ने पारदर्शिता न दिखाते हुए उन ठेकेदारों कोफायदा पहुंचाया है जो उनके जानकार थे।
पांचवी एजेंसा है डीडीए। रिपोर्ट के मुताबिक डीडीए ने कानून को ताक पर रख कर ऑस्ट्रेलिया की चार कंपनियों कोफायदा पहुंचाया। टेंडर हथियाने के लिए इन चार कंपनियों ने एक समूह बनाया जिसमें सबका हिस्सा था। लेकिनठेका मिलने के बाद इन कंपनियों के समूह की बनावट बदल गई। कंपनियों का जो समूह काम कर रहा है उसमें वोकंपनी ही नहीं है जिसकी काबिलियत के बल पर इन कंपनियों के समूह को टेंडर दिया गया था। साफ है किकॉमनवेल्थ गेम्स का काम कर रही पांचों सरकारी एजेंसियां भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक डूबी हैं। सवाल ये हैकि क्या भ्रष्टाचार का ये खेल बिना मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की जानकारी के हो सकता है।
बढ़ता ही गया खर्च का दायरा
कॉमनवेल्थ खेलों का बजट सुरसा की मुंह की तरह बढ़ता जा रहा है। अबतक 11 हज़ार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।और खेल मंत्रालय की माने तो बजट 12 हजार करोड़ से ज्यादा होगा। इसमें सौंदर्यीकरण और बुनियादी सुविधाओंकी परियोजनाओं पर दिल्ली सरकार की तरफ से खर्च की जा रही रकम शामिल नहीं है। साथ ही डीडीए, एनडीएमसी, एमसीडी, एनएचएआई द्वारा किए गए खर्च, भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण और पर्यटन मंत्रालयद्वारा कराए जा रहे खर्च शामिल नहीं हैं।
एक एनजीओ के अध्ययन के मुताबिक, खेल के अंत तक इस आयोजन के लिए 40 से 50 हजार करोड़ रुपये खर्चहो चुका होगा। सरकार ने 2007 में इस आयोजन के लिए 3 हजार 566 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। लेकिनखेल का बजट बदल चुका है।
पिछले तीन सालों में परियोजनाओं की लागत 770 करोड़ से बढ़कर 11 हजार करोड़ तक पहुंच गई है और सरकारका खजाना खाली हो गया है। बावजूद इसके इन परियोजनाओं में देरी सरकार की साख के लिए खतरा बन गई हैं।सरकार अब उम्मीद कर रही है कि अगले दो माह में कोई चमत्कार या जादू होगा और सभी परियोजनाएं पूरी होजाएंगी। आंकड़े बताते हैं कि खर्च में लगभग 1300 फीसदी की वृद्धि हुई है।
गेम्स के नाम पर सरकारी धन की ऐसी 'बंदरबांटÓ शुरू हुई कि न केवल परियोजनाओं की लागत में वृद्धि होने लगीबल्कि नई-नई परियोजनाओं को गेम्स के नाम पर मंजूरी दी जाने लगी। कहां तो सभी परियोजनाओं का बजटकरोड़ था और कहां अब सलीमगढ़ फोर्ट मार्ग की अकेली परियोजना की लागत 650 करोड़ और बारापुलाएलीवेटिड रोड की लागत 660 करोड़ है।
अब सरकार पर स्मॉल सेविंग का 27 हजार करोड़ कर्ज हो गया है, जिसका ब्याज ही 27 सौ करोड़ सरकार को हरसाल देना पड़ेगा। परियोजनाओं पर इतना भारी भरकम खर्च के बावजूद परियोजनाएं पूरी नहीं हो रही हैं और इनमेंदेरी के कारण सरकार की लगातार फजीहत हो रही है। अब जबकि खेल आयोजन में मात्र लगभग दो माह कासमय रह गया है तो सरकार यह उम्मीद कर रही है कि अचानक कोई चमत्कार होगा और सभी परियोजनाएं पूरीहो जाएंगी। वास्तविकता यह है कि अब भी राजधानी की सड़कें खुदी पड़ी हैं और कई परियोजनाएं अधर में दिखाईदे रही हैं।
प्रमुख परियोजनायें जिनकी बढ़ीं लागत
1- जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम
770 अनुमानित लागत- 580 करोड़ रु.
अंतिम लागत - 890 करोड़ रु.
2- यमुना स्पोटर््स कॉम्पलेक्स
अनुमानित लागत- 200 करोड़ रु.
अंतिम लागत - 300 करोड़ रु.
3- तालकटोरा स्टेडियम
अनुमानित लागत- 85 करोड़ रु.
अंतिम लागत - 150 करोड़ रु.
विदेशी दौरे का खेल
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के नाम पर एक नया खेल सामने आया है। वह है विदेश दौरे का खेल। इस खेल केखिलाड़ी है आयोजन समिति के अधिकारियों। इन अधिकारियों ने पिछले चार सालों में करीब 90 विदेशी दौरे किएहैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन देशों के भी दौरे किए जो राष्ट्रमंडल से बाहर हैं। इसके लिए मंत्रालयका 92 लाख रुपये खर्च हुआ। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने इस संदर्भ में कहा है कि केंद्रीय सतर्कताआयोग की जांच में यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा।
अधिकारियों की पोल खोलने वाली यह जानकारी सूचना के अधिकार तहत सामने आई है। इसको अभिषेक शुक्लानामक व्यक्ति ने दायर किया था। इसमें मंत्रालय ने 2005-2009 के दौरान अपने अधिकारियों के 87 दौरों कीसूचना दी है। यात्रा करने में सबसे आगे संयुक्त सचिव एस. कृष्णन रहे। इन्होंने 2005-07 के बीच 11 बार विदेशदौरा किया। उनके बाद संयुक्त सचिव राहुल भटनागर ने 2007-09 में 10 और संयुक्त सचिव आई. श्रीनिवास नेआठ विदेशी दौरे किए। मंत्रालय के सचिव एस.के. अरोड़ा सात बार विदेश गए। इन सभी ने क्यूबा, चीन, कुवैत औरदक्षिण कोरिया का भी दौरा किया। ये देश राष्ट्रमंडल का हिस्सा नहीं हैं।
श्री शुक्ला ने खर्चे का भी ब्यौरा मांगा जिनमें टिकट की कीमत, होटल में रुकने और स्थानीय यात्रा का खर्चा शामिलहैं लेकिन मंत्रालय ने इसका जवाब देने से इंकार कर दिया और कुल खर्च राशि के बारे में ही जानकारी दी।
तारीख पर तारीख...
फिल्म दामिनी का यह डायलॉग तो सुना ही होगा। इस फिल्म में वकील बने सन्नी देओल न्यायतंत्र की लेटलतीफीपर नाराज होकर ऐसा बोलते हैं। कुछ ऐसा ही हाल कॉमनवेल्थ गेम का भी है। फर्क इतना है कि भारत का हरनागरिक इस समय परियोजनाओं की बढ़ती तारीख से परेशान है। क्योंकि सवाल देश की इज्जज का है। कहांपरियोजनाओं को सालों पहले पूरा करके खिलाड़ीयों को सुपुर्द कर देना चाहिए था, और कहां खेलों के शुरू होने तकभी काम पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। अधिकांश परियोजनाओं की डेडलाइन आगे बढा दी गई है। जो पूरा करकेसमिति को सुपुर्द भी किया गया है, उनकी क्वालिटी खराब है। आलम यह है कि छिटपुट बारिश हो जाने परस्टेडियम में पानी भर गया है, नाले बंद हो गए हैं, छतें रिस रही हैं, हर तरफ जल जमाव है, मलबे
फैले हुए हैं।
आइए जानते हैं बदइंतजामी और अव्यवस्था की कुछ बानगी। जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम को मार्च 2009 तकबनकर तैयार हो जाना था, लेकिन दिसंबर 2009 तक इसकी वर्क डेडलाइन बढ़ा दी गई। पर हद तो देखिए इससमय तक भी काम पुरा नहीं हो सका। किसी तरह से 31 जुलाई 2010 तक इस काम को पुरा किया जा सका है।उसमें भी उद्घाटन के दिन से ही छतों से पानी टपक रहा है और मलबा चारों ओर फैला हुआ है। इसी स्टेडियम मेंखेलों के उद्घाटन और समापन समारोह होने वाले है। कल्पना कीजिए यदि उद्घाटन के समय बारिश हो गई तोविदेशी मेहमानों का क्या हाल होगा। कितनी भद्द पीटेगी अपने देश की। यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, इसको भीमार्च 2009 तक बन जाना था, लेकिन इसक भी डेडलाइन पहले दिसंबर 2009, और फिर 31 अगस्त 2010 कीगई है। यहां तीर अंदाजी और टेबल टेनिस प्रतियोगिता होनी है। तालकटोरा स्टेडियम, इसकी पहली डेडलाइन मार्चथी, जो बाद बढ़ाकर अक्तूबर 2009, और फिर फरवरी 2010 की गई। तब जाकर निमार्ण कार्य समाप्त होसका। गुडग़ांव के कादरपुर में शुटिंग रेंज, बनने के कुछ ही दिन बाद इसकी चारदीवारी गिर गई। यह कॉमनवेल्थगेम्स का आधिकारिक स्थल है। इंदरा गांधी इनडोर स्टेडियम, इसका उद्घाटन 30 अप्रैल को ही कर दिया गया।उद्घाटन के 5 महीने बाद भी इसके चारों तरफ अव्यवस्थाओं का संजाल फैला हुआ है। प्लेग्राउंड खुदा पड़ा है। तारऔर लाइट कवर्स बिछे पड़े हैं।
2010
आरोप - प्रत्यारोप
देश की इज्जत दांव पर लगी हुई है। और कॉमनवेल्थ गेम्स के कर्णधार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने मेंलगे हुए हैं। काम पूरा नहीं होने पर एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजनसमिति के सचिव ललित भनोट का कहना है कि समिति केवल खेलों के आयोजन के लिए जिम्मेदार है।
वहीं कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के सीईओ माइक हूपर के मुताबिक, कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के नियमावलीके अनुसार खेलों के आयोजन में साफ लिखा है कि आयोजन समिति, मेजबान देश और मेजबान शहर संयुक्तरूप से आयोजन के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहते कि खेलों में किसी प्रकार का अड़ंगाडाला जाय। वैसे वास्तविकता यह है कि बहुत काम बाकी है। खासकर फिनिशिंग और मलबा उठाने का काम बहुतधीमे है।
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