Pillar of True Journalism to save Public Domain

Monday, November 22, 2010

प्रेस की निष्पक्षता के लिए बहुआयामी संघर्ष छेडऩा होगा

16 नवंबर को राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस था। यह दिन भारत की पत्रकारिता के नाम था। पर यह भी अपने देश के अन्य दिवसों की तरह मनाया गया। जागरण जैसे अखबार ने अन्दर के पेज एक विज्ञापन छाप कर अपने जिम्मेदारी की इतिश्री समझ ली, तो जनसत्ता ने अगले दिन एक खबर लगाकर।
अन्य राष्ट्रीय दिवसों की तरह इस दिन भी एक गोष्ठी काआयोजन किया गया। केरल भवन में दिल्ली यूनियन ऑफजर्नलिस्ट्स (डीयूजे) और डीएमसीटी की ओर से इसकाआयोजन किया गया था। पत्रकारिता बचाओ के तहत हुएआयोजन में ज्यादातर की राय थी कि देश में बहुसंख्यकलोगों का आज भी भरोसा प्रिंट मीडिया पर ही है। इसलिएइसे बचाए रखने के लिए सभी मीडियाकर्मियों को एकजुटहोना होगा। पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर नेकहा कि जब पत्रकारिता में थे तब आज की अपेक्षा बेहतर माहौल था। आज वे ठेके पर पत्रकारों की नियुक्ति औरविविध स्तरों पर पेड न्यूज का बोलबाला देख रहे हैं, उस पर उन्हें आश्चर्य है। ऐसे में जरूरी है कि देश में मजबूतलोकतंत्र की खातिर प्रिंट विजुअल और वेब से जुड़े तमाम मीडियाकर्मी
केवल प्रेस की निष्पक्षता बल्कि अपनेपेशे में भी अच्छा कर पाने के लिए हावी दिखें। उन्होंने कहा कि इसके लिए बहुआयामी संघर्ष छेडऩा होगा। इसकेलिए संसद को घेरना और अदालतों में न्याय की गुहार लगानी पड़ सकती है।
नैयर ने यहां डीयूजे और डीएमसीटी की ओर से प्रकाशित 'पे्रस फार सेल : वाच डाग अनमास्कड' (बिकाऊ है प्रेसपहरेदार का हुआ पर्दाफाश) पुस्तिका का लोकार्पण भी किया। उन्होंने कहा कि प्रेस को हर हालत में व्यवस्थाविरोधी होना चाहिए। प्रेस आज आजाद कतई नहीं है। ऐसे में हमें यह सोचना होगा कि ऐसे इसे लोकतंत्र की रक्षाकी खातिर बचाया जाए। उन्होंने कहा, यह जरूरी है कि भारत सरकार मीडिया पर एक व्यापक आयोग नियुक्त करे।मैं मानता हूं कि प्रेस को निडर, मजबूत और प्रामाणिक बनाने के लिए केवल सत्ता बल्कि विपक्ष केजनप्रतिनिधि भी इस आंदोलन में पत्रकारों के साथ होंगे। उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद प्रेस को वाकईआजादी मिली थी, लेकिन समय के साथ अखबार मालिकों के नजरिए में आए बदलाव के चलते लोकतंत्र का यहचौथा खंभा अब खासा दरक गया है। इसे बचाने की जिम्मेदारी अब पत्रकारों पर है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे कि लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए विपक्ष नहीं बल्कि एक मजबूत मीडिया जरूरी है।
पेड न्यूज मामलों की छानबीन के लिए प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया की ओर से बनी दो सदस्यीय कमेटी के एकसदस्य प्रणंजय गुहा ठाकुरता ने कहा हमने इस संबंध में पूरे देश का दौरा किया। कई सौ लोगों से बातचीत की।राजनीतिक लोगों ने बताया कि किस तरह चुनावों में प्रचार के लिए उनसे पैसों की फरमाइश की गई। कुछ नेफरमाइश पूरी की। उन्होंने सबूत भी दिए। लेकिन हमारी 35 हजार शब्दों की रपट के समांतर प्रेस परिषद केदवाबों के तहत 35 सौ शब्दों में एक दूसरी रपट तैयार की और जारी कर दी।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि ज्यादातर जिलों में उन्होंने ऐसे संवाददाता पाए जिन्हें पारिश्रामिक बतौरया तो कुछ भी नहीं या फिर महज पांच सौ रुपये मासिक तौर पर मिलते हैं। इसके साथ ही उन पर विज्ञापन भीलाने का दबाव होता है। ऐसे में वे पेड न्यूज के सहायक हो जाते है।
डीयूजे के महासचिव एसके पांडे ने कहा कि इसी विषय हिंदी में जारी हुई राम बहादुर राय की संपादित पुस्तककाली खबरों की कहानी' : '
खासी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता से जुड़े तमाम मीडियाकर्मियों कोमिलकर एक संयुक्त मोर्चा बनाना चाहिए। जिससे देश में लोकतंत्र के चौथे खंभे के तौर पर प्रेस का महत्व बना रहसके और उसे खरीद सकने का दंभ तोड़ा जा सके।
इस तरह के आयोजन हर कुछ दिन के बाद हुआ करते हैं। हर वक्ता अपनी बात रखते हैं। लोग सराहते भी हैं। याद करें प्रभाष जोशी और विनोद दुआ की बातों को। इन लोगों ने पिछले लोकसभा चुनावों में पेड न्यूज की जम कर मुखालफत की, लेकिन हुआ क्या? उनकी आवाज भी दब गई। अब जरूरत बोलने की नहीं, कुछ कर दिखाने की है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब दूसरों के हक लिए लडऩे वाला चौथा खंभा बिखर जाएगा।

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