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Monday, October 10, 2011

कहां तुम चले गए...


गजल सम्राट जगजीत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में दम तोड़ दिया। करीब दो सप्ताह पहले ही उन्हे यहां भर्ती कराया गया था। उनकी आखिरी सांस के साथ ही मौशिकी की दुनिया का एक कालखंड समाप्‍त हो गया। 


जगजीत जिंदगी के आखिरी वक्‍त तक गाते रहे। जिस दिन उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती कराया गया, उस दिन भी मुंबई में उन्‍हें एक कार्यक्रम देना था। 70 साल के जगजीत सिंह को उस दिन पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली के साथ एक कंसर्ट में हिस्सा लेना था। 




गजल गायकी को नया अंदाज देने के लिए जगजी‍त सिंह को हमेशा याद किया जाता रहेगा। जगजीत सिंह ने 1999 में आई फिल्‍म ‘सरफरोश’ के गीत ‘होश वालों को खबर क्‍या...’ को आवाज दी थी। 


मशहूर गायिका लता मंगेशकर के मुताबिक उन्‍होंने गजल गायकी में हर चीज बदल ली। बोल, सुर, ताल, आवाज...सब कुछ। उन्‍होंने गजल गाकर यह भी साबित किया कि गायिकी में दौलत-शोहरत कमाने के लिए बॉलीवुड से भी बाहर दुनिया है। 


जीवन की राह पर मजबूती से बढ़ाते रहे कदम


जगजीत सिंह राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे। उनके पिता संगीतकार बनने में असफल रहे, अत: अपने पुत्र के माध्यम से अपने सपने को साकार करना चाहते थे। लिहाजा वे जगजीत को संगीत गुरुओं के पास ले गए और सेन बंधुओं की शिक्षा उन्हें लंबे समय तक मिली। जालंधर के कॉलेज में पढ़ते हुए उनके गायन के कई लोग कायल हुए और वे मुंबई आए। उन्होंने लंबा संघर्ष किया। 


वह संगीत की शिक्षा देने कई जगह जाते थे और दत्ता की विवाहिता तथा कन्या मोनिका की मां चित्रा को उनसे प्रेम हो गया। हारमोनियम की पट्टी पर सीखने-सिखाने के समय दोनों की अंगुलियां टकराईं और प्रेम का संदेश आत्मा तक जा पहुंचा। दत्ता साहब ने नजाकत समझी और दृश्य पटल से पटाक्षेप कर गए। 




जगजीत-चित्रा का विवाह हुआ और विवेक नामक पुत्र का जन्म हुआ। मोनिका की भी शादी हो गई। निदा फाजली ने बताया कि एक बार लता मंगेशकर ने कहा था कि पाकिस्तान के गजल गायक मेहंदी हसन के गले में ईश्वर विराजते हैं। इसी तर्ज पर निदा का ख्याल है कि जगजीत सिंह के गले में अल्लाह विराजते हैं।


 मेहंदी हसन और जगजीत सिंह ने गजल गायकी में महारत हासिल की है। जगजीत सिंह और चित्रा ने लंदन में मिलकर गाया और उसी लाइव शो की रिकॉर्डिग जारी होकर अत्यंत लोकप्रिय हुई। उसमें निदा फाजली की प्रसिद्ध गजल ‘दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है। 


'सबसे मधुर है गीत वही जो हम दर्द की धुन में गाते हैं'




जगमोहन से बने जगजीत
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है’ गाया और बाद के अनेक रिकॉर्डस में उन्होंने निदा को गाया है। ‘इनसाइट’ नामक रचना में तमाम दोहे और गजलें निदा फाजली की हैं, जो उन्होंने खुद चुनीं। ज्ञातव्य है कि जगजीत सिंह उर्दू पढ़ते हैं। युवा पुत्र विवेक की कार दुर्घटना में हुई मृत्यु के बाद जगजीत सिंह ने अपने दर्द को अपने काम में डुबो दिया और उनका माधुर्य बढ़ गया। याद आता है अंग्रेजी कवि शैली का विश्वास ‘वी लुक बिफोर एंड आफ्टर, एंड पाइन फॉर व्हाट इज नॉट, अवर सिंसेयर लाफ्टर विद सम पेन इज फ्रॉट, अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज, दैट टेल ऑफ सेडेस्ट थॉट।’ इसी भाव को शैलेंद्र ने दोहराया है- सबसे मधुर है गीत वही जो हम दर्द की धुन में गाते हैं।




दरअसल सृजन दर्द के अंधे कुएं से ही उपजता है। एक ओर साहसी जगजीत सिंह ने गायन के रूप में अपनी आराधना जारी रखी, दूसरी ओर चित्रा बिखर गईं। मोनिका ने भी दो लड़कों को जन्म देकर 


जाने क्यों आत्महत्या कर ली और फिर ईश्वर ने जगजीत सिंह को आजमाया। वे हमेशा खरे उतरे। कैफी साहब का लिखा गीत ही जगजीत सिंह की जीवन शैली बना- ‘तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो।’




साभार: daininbhaskar.com

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