''यार, यहां बहुत बेगार करवाते हैं। कोई सेल्फ रिस्पेक्ट ही नहीं है। इलेक्शन के खर्चों का टारगेट अभी से दे दिया है। क्या इसलिए इतनी पढ़ाई करके आईपीएस बना था? ये लोग वर्दी वालों से ही उगाही करवा रहे हैं। अब नौकरी छोड़ दूंगा।''
खुदकुशी से ठीक पहले बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के एसपी राहुल शर्मा ने अपना यह दुख अपने दोस्त के साथ साझा किया था। राहुल और उनके दोस्त हरिमोहन थकुरिया जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में साथ में पढ़े थे। हरिमोहन के मुताबिक, सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उन्होंने राहुल से पांच मार्च को बात की थी।
इस घटना के कुछ दिन पहले ही आईपीएस नरेंद्र कुमार को खनन माफिया ने ट्रैक्टर से रौंद कर मार डाला था। वह खनन पर अंकुश लगाने के लिए अभियान चला रहे थे। इसी बीच उनके साथ यह खौफनाक खूनी खेल गया था।
अब सवाल यह उठता है कि क्या ईमानदार अधिकारियों का यही हाल होता है। उन्हें या तो मौत के घाट उतार दिया जाता या फिर इस व्यवस्था से तंग आकर वे खुद मौत को गले लगा लेते हैं। अधिकांश मां-बाप अपने बेटे-बेटी को आईपीएस या आईएएस बनाना चाहते हैं। तैयारी में उनकी आधी उम्र निकल जाती है। सलेक्शन के बाद पोस्टिंग के लिए जुगाड़ लगाना पड़ता है।
उसके बाद यदि ऐसा हश्र हो तो दिल फटने लगता है। सपने टूट जाते हैं। दुनिया से मोह खत्म हो जाता है। और उसकी परिणति कुछ ऐसी ही होती है।
1 comments:
kanoon ka khoon karne walo par kasa jae shikanja.
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