Pillar of True Journalism to save Public Domain

Friday, June 11, 2010

बाहर निकला एंडरसन का जिन्न, शुरू हुआ तमाशा

बाहर निकला एंडरसन का जिन्न, शुरू हुआ तमाशाभोपाल गैस त्रासदी पर अदालत का फैसला आने के बाद मीडिया में इस पर जोरो से बहस हो रही है। हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं . इसमें वॉरेन एंडरसन और अर्जुन सिंह का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट नाम की जहरीली गैस के रिसाव से पूरे शहर में मौत का तांडव मचाकर 15 हजार से भी अधिक लोगों के हत्या और लाखो लोगो की तबाही के जिम्मेदार इस एंडरसन का जिन्न बाहर आ गया है। फैसले के वक्त जिस शख्स का नाम अदालत ने भी फैसले में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा, आज वह मीडिया के कारण वांटेड हो चुका है।पर दुख की बात यह कि फैसले पर समीक्षा करके पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय एंडरसन पर यह बहस करना कि- वह किस रंग की गाड़ी में भागा था, उस गाड़ी का नंबर क्या था, उसके जहाज को उड़ाने वाले पायलट कौन थे? कहां तक जायज है।कहीं...

Thursday, June 10, 2010

Happiness and Unhappiness of Human life

Mahatma Gandhi said that Our happiness or unhappiness is always determined by our thoughts. Happiness is when what you think, what you say, and what you do, are in harmony. BUDDHA said that Thousands of candles can be lighted from a single candle, and the life of the candle will not be shortened. Happiness never decreases by being shared. .Our thoughts determine what people and situations mean to us. Our thoughts determine our experience of ourselves and others—how people and things and situations exist for us in our awareness. But we are usually unaware of the role of our thoughts, and so we believe that we are simply experiencing “what is there,” “how things really are.” And therefore we think that it is the people and things and situations outside of ourselves that are causing us to be...

सूचना आम आदमी के अधिकार की

पिछले कुछ सालों में सूचना का अधिकार कानून को खूब सफलता मिली है। लेकिन ये खबरें भी अक्सर मिलती रहीं है कि कुछ लोग इसके रास्ते में बांधा खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों का उत्पीडऩ किया गया है, जिन्होंने इस अधिकार के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से पर्दा उठाने की कोशिश की । इतना ही नहीं, अधिकार मिल जाने के बावजूद आम लोगों को मामूली सूचनाएं हासिल करने के लिए भी पसीना बहाना पड़ता है। लेकिन सारी परेशानियों के बाद भी इस अधिकार का उपयोग कई तरह के सार्थक कार्यों में करने वालों की संख्या बढ़ी है। इसे लोकतंत्र की ताकत ही माना जाएगा। एक दौर याद था जब राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के अधिकार का कानून बनाने का अभियान अपने शुरुआती दौर में था। उस समय कई बार कहा गया था कि यह तो केवल शहरी शिक्षित वर्ग या मध्यम वर्ग का ही मुद्दा है। पर आज हकीकत यह है कि दूरदराज के...

ग्लोबल वार्मिग और कृषि

अभी हाल ही में जलवायु पर चर्चा करने के लिए कोपनहेगन में पूरा विश्व इकठ्ठा हुआ था। लेकिन सम्मेलन से ठोस कुछ भी हासिल नहीं हुआ। पहले भी क्योटो प्रोटोकाल के नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संधि हो चुकी है। क्योटो प्रोटोकाल का लक्ष्य है वर्ष 2012 तक जीएचजी का उत्सर्जन 1990 के उत्सर्जन स्तर से नीचे ले जाना। यदि यह संधि सफल रहती है तो वायुमंडल में जीएचजी की मात्रा घटेगी और धरती का तापमान सामान्य हो जाएगा। लेकिन संधि असफल रही तो धरती की गर्मी में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी। कोपनहेगन जलवायु सम्मेलन में शामिल हुए भारत के विशेष दूत श्याम सरन के मुताबिक कोपनहेगन जलवायु सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन की कटौती के सिलसिले में आपसी सहमति के साथ कानूनी तौर पर बाध्यकारी फैसला होना चाहिए था। हालांकि सम्मेलन की कामयाबी को लेकर दुनियाभर में पहले से ही आशंकाएं थी। अमीर देशों ने सब कुछ पहले से तय कर रखा था। विकासशील देशों...
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