पिछले कुछ सालों में सूचना का अधिकार कानून को खूब सफलता मिली है। लेकिन ये खबरें भी अक्सर मिलती रहीं है कि कुछ लोग इसके रास्ते में बांधा खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों का उत्पीडऩ किया गया है, जिन्होंने इस अधिकार के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से पर्दा उठाने की कोशिश की । इतना ही नहीं, अधिकार मिल जाने के बावजूद आम लोगों को मामूली सूचनाएं हासिल करने के लिए भी पसीना बहाना पड़ता है।
लेकिन सारी परेशानियों के बाद भी इस अधिकार का उपयोग कई तरह के सार्थक कार्यों में करने वालों की संख्या बढ़ी है। इसे लोकतंत्र की ताकत ही माना जाएगा। एक दौर याद था जब राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के अधिकार का कानून बनाने का अभियान अपने शुरुआती दौर में था। उस समय कई बार कहा गया था कि यह तो केवल शहरी शिक्षित वर्ग या मध्यम वर्ग का ही मुद्दा है। पर आज हकीकत यह है कि दूरदराज के गांवों में साधारण किसानों-मजदूरों के हकों की रक्षा के लिए भी इस अधिकार का सही और समुचित उपयोग हो रहा है। नरेगा व अन्य योजनाओं के बिल-वाउचर आदि दस्तावेजों की प्रति लेकर उनमें भ्रष्टाचार पकडऩे का काम कई जगहों पर हुआ है।
आज जरूरत सूचना के अधिकार को सीमित करने की नहीं, बल्कि इसका दायरा और बढ़ाने करने की है। मिसाल के तौर पर राजनैतिक दलों और चुनावों की पारदॢशता सुनिश्चित करने के प्रयास अभी पूरे नहीं हुए हैं। चुनावों में जो बेतहाशा खर्च किया जाता है, वह इस बारे में उपलब्ध करवाई गई जानकारी से मेल नहीं खाता। इस तरह लोकतंत्र के पहले चरण पर ही भ्रष्टाचार की शुरुआत हो जाती है। हर देश की जनता को यह जानने का अधिकार होता है कि जो सरकार शासन व्यवस्था चलाने के लिए और जनता की सेवा के लिए बनाई गई है वह क्या,कहां और किस प्रकार काम कर रही है?
देश में प्रत्येक नागरिक विभिन्न प्रकार के करों का भुगतान करते हैं। इन करों को सरकार जनहित में खर्च करने के लिए लेती है। इसलिए जनता को यह जानने का अधिकार बनता है कि उससे लिए धन को कहां और कैसे खर्च किया जा रहा है। जनता द्वारा जानने के इसी अधिकार को सूचना का अधिकार कहते हैं। सन् 1976 में राजनरायण बनाम उत्तर प्रदेश मामलें में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 में वर्णित सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार के रुप में घोषित किया था। अनुच्छेद 19 में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। न्यायालय ने कहा था लोग जब तक जानेगें नहीं, तब तक अभिव्यक्ति नहीं कर सकते।
वर्ष 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया। इसे सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार नागरिक सरकार से सूचना मंागेगें और किस प्रकार सरकार की जवाबदेही होगी। चंूकि सरकार और उसकी गतिविधियां हमारी रोजमर्रा की ङ्क्षजदगी में अहम भूमिका निभाती है। शिक्षा, चिकित्सा, बिजली-पानी, सडक़ और रेल से जुड़ा मामला हो या कोई अन्य सरकारी योजना, सरकार की कार्यप्रणाली हमें हर जगह प्रभावित करती है। इस बीच कुछ भ्रष्ट, लापरवाह कर्मचारियों की वजह से सरकार की योजनाएं केवल कागजी बनकर रह जाती हैं।
सूचना के अधिकार ने आम लोगों को एक नई शक्ति प्रदान की है। इस अधिकार से सरकारी विभागों में लटके कार्य आसानी से हो सकते हैं। लेकिन इस अधिकार की सूचना आम आदमी तक अभी पूरी तरह से पहुंच नहीं पाई है। हालांकि ‘कबीर’ जैसे कुछ एन.जी.ओ. ने इस अधिकार को अभियान बनाकर आम आदमी तक पहुंचाने की कोशिश की है। इसके कार्यक्रम ‘घूस को घूसा’ ने जबरदस्त सफलता हासिल की है। इसी वजह से इसके संस्थापक सदस्य अरङ्क्षवद केजरीवाल को एशिया को नोबेल कहे जाने वाले रैमन मैग्से पुरस्कार प्रदान किया गया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम लोगों को असीमित अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत हम सरकार से कोई भी सवाल पूछ सकते और कोई भी सूचना ले सकते हैं। किसी भी सरकारी दस्तावेज की प्रमाणित प्रति ले सकते हैं। किसी भी सरकारी कार्य और दस्तावेज की जांच कर सकते हैं।
इसके दायरे में पूर्णत: निजी संस्थाओं को छोडक़र सभी सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी होता है जो आवेदक को 30 से 45 दिनों के भीतर सूचना उपलब्ध करवाता है। सूचना का अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी किसी वरदान से कम नहीं है। जब जरूरत इस बात की है कि इस अधिकार को लोग अधिक से अधिक जाने और प्रयोग करना सीखें।
सूचना का अधिकार चाहे जितना भी उपयोगी और सार्थक माना जाए, लेकिन यह दावा नहीं किया जा सकता कि इस कानून के बनने के बाद से हमारे देश में भ्रष्टाचार के मामलों में निश्चित तौर पर कोई कमी आई है। दुर्भाग्य से देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली ताकतें और प्रवृत्तियां इतनी ज्यादा हावी हैं कि उनके खिलाफ उठाए जा रहे ये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं, उनका अपेक्षित असर भी नहीं हो पा रहा है। इसलिए जरूरी है कि सूचना के अधिकार जैसे कानूनों और अभियानों को और मजबूत किया जाए।
क्या है अधिकार-
1- सूचना अधिकार के तहत देश का प्रत्येक नागरिक किसी भी सरकारी विभाग या सरकारी फंड से चलने वाली किसी भी संस्था से सूचना प्राप्त कर सकता है।
2- उसके दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकता है।
3- उसके कागजात की प्रतिलिपी लेे सकता है। यह सामग्री टेप ,वीडियो कैसेट, या प्रिंट आउट भी हो सकता है।
यहां से कर सकते सूचना प्राप्त-
सूचना के अधिकार का तहत निम्नलिखित जगहों से सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं-
1- सार्वजनिक प्राधिकरणों में शामिल ने सभी संस्थाएं जिसे संविधान द्वारा गठित किया गया है।
2- संसद या किसी राज्य विधायिका के कानून द्वारा स्थापित या गठित संस्थाएं।
3- केंद्र या राज्य सरकार की किसी अधिसूचना या आदेश के द्वारा स्थापित या गठित संस्थाएं।
4- सभी गैर सरकारी या निजी क्षेत्रों के निकाय जिसे सरकार के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से वित्त पोषित किया गया है॥
याद दिला दे कि कुछ संस्थाएं सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आते हैं। धारा-8 के अनुसार 22 विभागों से सूचना प्राप्त नहीं की जा सकती। इनमें केंद्रिय गुप्तचर विभाग और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाएं शामिल हैं। ऐसी सूचनाएं नहीं दी जा सकती जिनका खुलासे से संसद या राज्य विधायिका के विशेषाधिकार का उल्लंघन होता है। जिनसे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरें में पड़ती हों। जिनसे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों या किसी विदेशी राज्य से इसके संबंधों को नुकसान पहुचे।
कैसे करें सूचना प्राप्त-
किसी भी संस्था या विभाग से सूचना प्राप्त करनें के लिए संबंधित विभाग के लोक सूचना अधिकारी के नाम आवेदन किया जाता है। हर जिलें में एक सूचना अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जिस विभाग से जानकारी प्राप्त करनी है, उसके लिए आवेदन करना होता है। सूचना प्राप्त करने की फीस हरियाणा, सिक्किम, गुजरात को छोडकर पूरे देश में 10 रूपए है। जबकि हरियाणा में 50 रू.,सिक्किम में 100 रू. ,और गुजरात में 20 रू. है। गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों से आवेदन की कोई फीस नहीं ली जाती।
नहीं कर सकते इंकार
इस कानून में ऐसी व्यवस्था है जिससे के तहत कोई भी अफसर या कर्मचारी सूचना देने से इंकार नहीं कर सकता। यदि मांगी गई सूचना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर की होती है, तो वह उसे संबंधित विभाग को सौंप दी जाती हैं। यदि कोई व्यक्ति सूचना प्राप्त करने के लिए अपील करता है तो यह अपील सूचना अधिकारी के पास जाती है। यदि सूचना अधिकारी 30 दिन के अन्दर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, तो प्रथम अपील कर सक ते हैं। यह अपील प्रथम अपीलिया अधिकारी के पास जाती है। यदि प्रथम अपीलिया अधिकारी अगले 30 दिन के अन्दर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, तो राज्य सूचना आयोग में इसकी शिकायत की जा सकती है। जो सूचना न उपलब्ध कराने पर सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलिया अधिकारी पर 250 रू. प्रतिदिन और अधिकतम 25 हजार रू. तक का जुर्माना कर सकता है। सूचना का अधिकार आम आदमी के लिए किसी हथियार से कम नहीं है।
आरटीआई में करे आनलाइन कोर्स
भारत सरकार ने आरटीआई के लिए आनलाईन सर्टिफिकेट कोर्स शुरु किया है। इसको करने के बाद सरकारी महकमों से जानकारी पाना अब और आसान हो जाएगा। यह कोर्स केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा संचालित किया जा रहा है। पिछले साल सितंबर में शुरू हुए इस कोर्स के तहत अब तक 334 लोग सर्टिफिकेट ले चुके है। इसके लिए अंग्रेजी की जानकारी होनी चाहिए।
इस कोर्स का मूल उद्देश्य सूचना का अधिकार कानून के बारे में आम लोगों को जानकारी देना और उन सरकारी अफसरों-कर्मचारियों को भी कानून की जानकारी देना, जिन्हे कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
कोर्स की अवधि- इस कोर्स की अवधि केवल 15 दिनों की है। इसके लिए कालेज जाने या फीस देने की जरूरत भी नहीं है। बस जरूरत है तो कंप्यूटर और इंटरनेट की।
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