पूर्वी यूपी में अधिकतर मां-बाप की रातें आंखों में कट जा रही है। मन बैचेन है। डर सता रहा है कि कहीं 'नौकी बीमारी' उनके लाल को न निगल जाए। डर इतना कि लाडले को छींक भी आ जाए तो कंठ सूख जाता है।
ऐसा हो भी क्यों ना। पूरे इलाके में मौत बनकर तांडव मचाने वाली नौकी बीमारी यानी जापानी इंसेफ्लाइटिस ने इस साल अब तक 400 मासूम बच्चों की सांसे छीन ली है। इतने ही करीब अस्पताल में भर्ती हैं। अकेले गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में ही करीब 2500 मरीज आ चुके हैं।
बताते चलें कि पूर्वी यूपी के गोरखपुर और आसपास के जिलों में 1978 से इंसेफ्लाइटिस महामारी के रूप में कहर ढा रही है। इसके सबसे आसान शिकार मासूम बच्चे है।
मरने वालों से कई गुना ज्यादा विकलांग और मानसिक बीमारों की संख्या है। सरकारी रिकार्ड में अब तक दस हजार बच्चों की मौतें हो चुकी हैं। जबकि तमाम मरीज ऐसे है जो निजी अस्पतालों में इलाज कराते रहें है जिनका सरकार के पास कोई रिकार्ड नही है।
पिछले 33 सालों में इस बीमारी से मरने वालों का अनुमानित आंकड़ा 25 हजार मौत और लाखों को विकलांग होने का है। इस साल गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज और अन्य अस्पतालों में लगातार नये मरीज भर्ती हो रहें है।
खून से लिखा खत, ताकी पसीज जाए दिल
पूर्वी यूपी में इंसेफ्लाइटिस उन्मूलन अभियान चला रहें डा. आरएन सिंह के मुताबिक, पूर्वांचल के किसानों के मासूमों को एंसेफ्लाइटिस के क्रूर पंजों से बचाने के लिए एक ‘खून से खत का महाभियान’ चलाया गया।
‘खून से लिखे खत’ देश के प्रधानमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री, योजना आयोग, सोनिया गांधी, राहुल गांधी व स्थानीय ‘पूर्वांचल’ के संवेदनशील सांसदों को लिखा गया।
पर फर्क किसी को नहीं पड़ा। यदि किसी ने पहल की भी तो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए। बच्चों की चिताओं पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे इन राजनेताओं को शर्म भी नहीं आ रही है। सरकार तो पहले से ही असंवेदनशील है।
साभार: तथ्य दैनिक भास्कर डॉट कॉम
1 comments:
Shit, is we really live in 21th century ??
All king size politicians are not sensitive for pain of normal people. they talk nice but they can't do any thing in practical life. its not my own word, its well known and we see all these since more then 60 year....may be its our destiny??
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