Pillar of True Journalism to save Public Domain

Sunday, November 27, 2011

ऐसे ही बचते रहे 'युवराज' तो बची हुई सीटें ही आएंगी 'हाथ'!

गरीबों के मसीहा। मजलूमों के मददगार। आम के साथ इनका 'हाथ'। भ्रष्टाचार और अत्याचार देख तमतमाया हुआ एंग्री यंगमैन। कुछ इसी अंदाज में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जब पूर्वांचल की यात्रा पर निकले तो लगा कि कांग्रेस की काया पलट हो जाएगी। आम आदमी की सहानुभूति मिलेगी। पर यह क्या आम आदमी की बात करने वाले राहुल ने अपनी पूरी यात्रा के दौरान एक बार भी उनकी बात नहीं की। उनसे जुड़े मुद्दों की बात नहीं की। उनसे बात नहीं की।  राहुल ने बात की तो राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की। सपा, बसपा और भाजपा की। उनकी कमियों की। एक बार भी आम आदमी के दुखों की बात नहीं की, बल्कि उनकी दुखती रग पर प्रहार किया। राहुल ने जब भी गरीबों का गाल सहला कर उनका भरोसा जीतने की कोशिश...

Friday, November 25, 2011

थप्पड़...ना 'ये' भगत सिंह की 'क्रांति' है, ना 'वो' बापू की 'गांधीगीरी'!

‘वह भ्रष्ट है। मैं यहां मंत्री को थप्पड़ मारने ही आया था। वे सभी भ्रष्ट हैं। मैंने ही रोहिणी कोर्ट में सुखराम को भी मारा था। मैं सिख हूं, चप्पल नहीं मारूंगा। सिर्फ भाषण देते हो। भगत सिंह को भूल गए जिसने कुर्बानी दी। मारो-मारो मुझे खूब मारो।....पागल हूं मैं.....। इनके पास घोटाले के अलावा कुछ नहीं है। मैं गलत नहीं हूं।’ यह कहते हुए ट्रांसपोर्ट व्यवसायी हरविंदर सिंह ने एनडीएमसी सेंटर में आयोजित समारोह में भाग लेने के बाद लौट रहे 71 वर्षीय शरद पवार पर हमला बोल दिया। अचानक हुए वार से वे बच नहीं सके। संतुलन भी खो बैठे। जैसे-तैसे संभले और रवाना हो गए। इस थप्पड़ से पूरा देश गूंज उठा। हर तरफ इसकी चर्चा होने लगी। जहां नेताओं इसकी जमकर भर्त्सना की, वहीं...

Monday, November 21, 2011

हम जाहिल हैं, आरोप अच्छा है: आशुतोष

मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा है। वह अपनी भूमिका ठीक से निभाएगा तभी सरकारों और नेताओं को तकलीफ होगी। नेताओं को तकलीफ होगी तो लोकतंत्र जिंदा रहेगा। वरना नेता तो चाहते हैं कि लोकतंत्र सोता रहे।  नया-नया जर्नलिज्म में आया था। अयोध्या का आंदोलन उफान पर था। बनारस में दंगे हुए थे। मुझे कवर करने के लिए भेजा गया था। वहां कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत हो रही थी। वे कह रहे थे कि पत्रकारिता की नई गंगा अब बनारस से निकलेगी। दंगों के दौरान की रिपोर्टिंग देख मैं पहले से ही सदमे में था। सब के सब उग्र हिंदूवादी रंग मे रंगे थे।  रिपोर्ट के नाम पर अफवाहें खबर बन रही थीं। दिल्ली से जाने के बाद उन खबरों की पुष्टि मैंने कई बार करने की कोशिश की। हर बार प्रशासन...

Friday, November 18, 2011

आपको पता है कि क्या होती है नौटंकी?

'नौटंकी मत करो' ऐसा बार-बार लोगों को बोलते हुए आपने सुना होगा। पर क्या आपको पता है क्या होती है नौटकी? आइए हम आपको बताते हैं। नौटंकी एक जीवंत, लोकप्रिय और प्रभावशाली लोककला है। यह कला जन-मानस से जुड़ी है। इस विधा में अभिनय थोड़ा लाउड किया जाता था। ठीक पारसी थियेटर की तरह। विषय कई बार बोल्ड रखे जाते थे, डायलॉग तीखे चुभने वाले होते थे। समयांतर इस विधा में विकृति आ गई औऱ इसे अश्लीलता का भी पर्याय माना जाने लगा। विद्वानों के मुताबिक, यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ। किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस सट्टक को नाटक का एक भेद माना...

Monday, November 14, 2011

बाल दिवस: कितनी हकीकत, कितना फसाना

आज पूरे देश में बाल दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुविधासंपन्न बच्चों के लिए तो आज का दिन वाकई ख़ास है. पर उन बच्चों का क्या, जो हर सुविधा से महरूम हैं। उनका भोला चेहरा जब हमारी तरफ आशा की नज़र से देखता है तो क्या हमारे मन में टीस नहीं उठती ?  चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं। कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है।  यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है। इनमें से अधिकांश...
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