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Sunday, November 27, 2011

ऐसे ही बचते रहे 'युवराज' तो बची हुई सीटें ही आएंगी 'हाथ'!

गरीबों के मसीहा। मजलूमों के मददगार। आम के साथ इनका 'हाथ'। भ्रष्टाचार और अत्याचार देख तमतमाया हुआ एंग्री यंगमैन। कुछ इसी अंदाज में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जब पूर्वांचल की यात्रा पर निकले तो लगा कि कांग्रेस की काया पलट हो जाएगी। आम आदमी की सहानुभूति मिलेगी। पर यह क्या आम आदमी की बात करने वाले राहुल ने अपनी पूरी यात्रा के दौरान एक बार भी उनकी बात नहीं की। उनसे जुड़े मुद्दों की बात नहीं की। उनसे बात नहीं की। 

राहुल ने बात की तो राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की। सपा, बसपा और भाजपा की। उनकी कमियों की। एक बार भी आम आदमी के दुखों की बात नहीं की, बल्कि उनकी दुखती रग पर प्रहार किया। राहुल ने जब भी गरीबों का गाल सहला कर उनका भरोसा जीतने की कोशिश की, तब मंहगाई और मुश्किलों का तमाचा पड़ा। गरीबों की तरफदारी करने वाला मंहगाई पर मौन रहा।

ऐसे ही देंगे जवाब?

राहुल जब यात्रा पर निकलने वाले थे तो पूरा यूपी 'जवाब हम देंगे' की होर्डिंग से पटा पड़ा था। राहुल ने लोगों को भरोसा दिलाया था कि आपकी परेशानियों पर जवाब हम देंगे। यहां तो लोगों को जवाब देना तो दूर अपने कार्यकर्ताओं तक को जवाब नहीं दिया गया। राहुल ने कहा कि आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की रीढ़ तोड़ देने वाला यूपी अब दूसरे राज्यों की ओर देख रहा है। परप्रांत में जाकर विकास में अपनी मेहनत मजदूरी से योगदान दे रहा है। बदले में उन्हें कुछ नहीं मिलता। पर खुद ही राहुल और उनके दिग्गज साथी महंगाई जैसे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए थे। जब खुद के कार्यकर्ताओं ने मंहगाई का मुद्दा उठाया तो खामोशी की चादर ओढ़ ली। सिद्धार्थनगर में गांव के लोगों ने रोका तो राहुल मुस्कराते हुए गाड़ी से उतरे। वहीं एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा कि ‘महंगाई को लेकर बहुत किरकिरी हो रही है, कुछ कीजिए। वर्ना जनता जीने नहीं देगी।’ इस मुस्कराते हुए राहुल मौन रहे। कोइ प्रतिक्रिया नही दी। 

बांसी रैली के भीड़ से आवाज आई ‘सांसदों के लिए संसद में एक रुपए की चाय, डेढ़ रुपए में दाल, एक रुपए में रोटी मिलती है। जबकि हम लोगों को इतने पैसे में सिर्फ रोटी मिलती है। ऐसी महंगाई क्यों।’ राहुल ने अनसुना कर दिया। सभा स्थल पर एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने माला से स्वागत करने के साथ उन्हे एक पत्र थमाया। इस पत्र में महंगाई के मुद्दे पर बोलने का आग्राह था। यहां भी राहुल ने इस मुद्दे को नजर अंदाज कर दिया। दरअसल, महंगाई और उसके बाद एफडीआई संबंधित केन्द्र सरकार के फैसले ने राहुल गांधी के यूपी दौरे के दौरान बन रहे माहौल को बिगाड़ दिया। राहुल गांधी गरीबों के सबसे बड़े पैरोकार बन कर उभर रहे थे। केन्द्र के निर्णय ने विपक्ष को केन्द्र सरकार और कांग्रेस को घेरने का मंहगाई के साथ नया मुद्दा दे दिया। 

रहे थे ललकार, निकल गई खुद की हवा

इधर राहुल गांधी विपक्ष को ललकार रहे थे तो उधर विपक्ष इनकी यात्रा की हवा निकालने में जुटा हुआ था। राहुल की चुटकी लेते हुए भाजपा नेता उमा भारती ने कहा कि राहुल गांधी को बहुत गुस्सा आता है तो अब मुझे भी गुस्सा आ रहा है। गुस्सा इतना कि वालमॉर्ट का एक भी स्टोर खुला तो आग लगा दूंगी।

मायावती ने कहा कि वह विदेशी कंपनियां यूपी में नहीं खुलने देंगी। राहुल के विदेशी दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने रीटेल कारोबार में एफडीआई की अनुमति दी है। इससे छोटे व्यापारियों और किसानों को तो नुकसान होगा। महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी।

पूर्वांचल के दौरे पर थे पर ज्वलंत समस्याओं पर चुप्पी साधे रहे। गोरखपुर जिले में स्थित बन्द पडा खाद कारखाना, दिमागी बुखार की भयावहता, बन्द सुगर मिल, गन्ना किसानों की बदहाली आदि मुद्दों का जिक्र तक नहीं किया। दिमागी बुखार से प्रतिदिन मौतें हो रही है इससे विकलांग हुए लोगों की अलग समस्या है। बाबा राघवदास मेडिकल कालेज संसाधनों की मार झेल रहा है, राष्ट्रीय राजमार्ग की बुरी हालत है। प्रदेश का विभाजन हो रहा है। पर इन तमाम मुद्दों पर राहुल की खामोशी ने पूर्वांचल के लोगों को मायूस किया है। यही कारण था जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा।


ऐसे ही बचते रहे, तो बची हुई सीटें आएंगी 'हाथ'


राजनीति में एक-दूसरे पर छींटाकशी आम बात है, लेकिन सिद्धांतों को तिलांजली दे देना यह साबित करता है कि इस हमाम में सब नंगे हैं। हर राजनेता और राजनीतिक पार्टी कोरी राजनीति करते हैं। किसी को न तो आम आदमी की फिक्र है ना किसी को विकास, महंगाई और बेरोजगारी जैसी भयंकर समस्याओं से मतलब। एक एक करके हर किसी के चेहरे से मुखौटा उतर जाता है। वही हाल राहुल का है। 

राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी का चेहरा बनकर विधान सभा के मैदान में उतरे हैं। राज्य में सरकार बनाने पार्टी ख्वाब देख रही है। पर जिनके कंधों पर कांग्रेस के उद्धार का भार है, वही नाजुक मुद्दे पर बोलने से इस कदर बचता रहा है। यदि राहुल ऐसे ही बचते रहे, तो इनके हिस्से बची बचाईं सीटें ही हाथ आने वाली हैं। अपने राजनीतिक सलाहकारों की वजह से वह एक बार बिहार चुनाव खो चुके हैं। अब यूपी की बारी है। उसके बाद केंद्र भी हाथ से निकलता दिख रहा है। राहुल का तो कुछ नहीं होगा, लेकिन दिग्गी राजा की गर्दन कटनी तय है। 

1 comments:

muudda said...

rahul bhai kaam bharastyachar say nahe kam to subha samachar say chalega desh to tumnay 60 sal say laut feka aab up ko to chod do

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