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Monday, November 14, 2011

बाल दिवस: कितनी हकीकत, कितना फसाना


आज पूरे देश में बाल दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुविधासंपन्न बच्चों के लिए तो आज का दिन वाकई ख़ास है. पर उन बच्चों का क्या, जो हर सुविधा से महरूम हैं। उनका भोला चेहरा जब हमारी तरफ आशा की नज़र से देखता है तो क्या हमारे मन में टीस नहीं उठती ? 


चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं। कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है। 


यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है। इनमें से अधिकांश बच्चे अपने रिश्तेदारों या मित्रों के यौन शोषण का शिकार है। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेल रहे इन मासूमों के लिए भला बाल दिवस के क्या मायने हो सकते हैं? अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता व अज्ञानता के कारण ये बच्चे शोषण का शिकार होकर जाने-अनजाने कई अपराधों में लिप्त होकर अपने भविष्य को अंधकारमय भी कर रहे हैं। 


इनकी फिक्र अगर किसी को होती तो इनका बचपन इनसे न छिना होता। ये भी बेफिक्र होकर, खिलखिला कर हसना जानते। ये भी अपने सपने बुनते और सुनहरे भविष्य की और अग्रसर होते।


सुविधासंपन्न बच्चे तो सब कुछ कर सकते हैं परंतु यदि सरकार देश के उन नौनिहालों के बारे में सोचे, जो गंदे नालों के किनारे कचरे के ढ़ेर में पड़े हैं या फुटपाथ की धूल में सने हैं। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है और न ही आवास। सर्व शिक्षा के दावे पर दंभ भरने वाले भी इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ नहीं पाते।


पैसा कमाना इन बच्चों का शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। ये मासूम तो एक बंधुआ मजदूर की तरह अपने जीवन को काम में खपा देते हैं और देश के ये नौनिहाल शिक्षा, अधिकार, जागरुकता व सुविधाओं के अभाव में, अपने सपनों की बलि चढ़ा देते है। 


यदि हमें 'बाल दिवस' मनाना है तो सबसे पहले हमें गरीबी व अशिक्षा के गर्त में फँसे बच्चों के जीवनस्तर को ऊँचा उठाना होगा और उनके अँधियारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश फैलाना होगा। यदि हम सभी केवल एक गरीब व अशिक्षित बच्चे की शिक्षा का बीड़ा उठाएँगे तो निसंदेह ही भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा तथा हम सही मायने में 'बाल दिवस' मनाने का हक पाएँगे।


इसके साथ ही हमारे अंदर जो संवेदना मर चुकी है उसे फिर से जिलाना होगा। नहीं देखना चाहते अब हम बच्चो को इस हालत में। उनका बचपन उन्हें लौटाना है। उनका भविष्य सवारना है.ऐसा माहौल बनाना है की हर बच्चे को देखकर हम गर्व करें।

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