‘वह भ्रष्ट है। मैं यहां मंत्री को थप्पड़ मारने ही आया था। वे सभी भ्रष्ट हैं। मैंने ही रोहिणी कोर्ट में सुखराम को भी मारा था। मैं सिख हूं, चप्पल नहीं मारूंगा। सिर्फ भाषण देते हो। भगत सिंह को भूल गए जिसने कुर्बानी दी। मारो-मारो मुझे खूब मारो।....पागल हूं मैं.....। इनके पास घोटाले के अलावा कुछ नहीं है। मैं गलत नहीं हूं।’
यह कहते हुए ट्रांसपोर्ट व्यवसायी हरविंदर सिंह ने एनडीएमसी सेंटर में आयोजित समारोह में भाग लेने के बाद लौट रहे 71 वर्षीय शरद पवार पर हमला बोल दिया। अचानक हुए वार से वे बच नहीं सके। संतुलन भी खो बैठे। जैसे-तैसे संभले और रवाना हो गए।
इस थप्पड़ से पूरा देश गूंज उठा। हर तरफ इसकी चर्चा होने लगी। जहां नेताओं इसकी जमकर भर्त्सना की, वहीं कुछ लोगों ने हरविंदर की सराहना की। एक संगठन ने तो 11 हजार का इनाम तक घोषित कर दिया।
पवार पर हुए हमले की जानकारी जब अन्ना हजारे को मिली तो उनके मुंह से निकला-‘उन्हें थप्पड़ पड़ा! सिर्फ एक?’ लेकिन इसके थोड़ी देर बाद वे बयान से पलट गए। उन्होंने संयत शब्दों का इस्तेमाल किया। वे बोले, ‘वह बहुत गुस्से में होगा। यह ठीक नहीं है। अन्ना ने बयान को बदल कर स्थिति संभाल ली। उनके पहले बयान से साफ झलक रहा था कि वो यही कह रहे थे कि एक ही थप्पड़ क्यों मारा। इससे पहले भी अन्ना ने कहा था कि शराबियों को बांध कर मारो। क्या ये गांधीगिरी है या आधुनिक अन्नागिरी।
अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा प्रचार पाने में सफल रहते हैं। इनके मन में कानून का कोई डर नहीं है? यदि जरा भी डर होता तो हरविंदर सिंह थप्पड़ ना मारता। और शरद पवार के समर्थक दंगा नहीं करते। लोग यह कह रहे हैं कि ये घटना भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ आम जनता के गुस्से का नतीजा है। ऐसा कहकर गलत दिशा में जा रहे हैं। इसे सनक और सुरक्षा में कमी मानना चाहिए। पर हां, आम आदमी के मन में भ्रष्टाचार और महंगाई प्रति रोष को भी नकारा नहीं जा सकता।
आम आदमी बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश न लग पाने से परेशान है। उसमें भी विरोध जताने का ये कैसा तरीका कि आप किसी पर जूते-चप्पल फेंके, उसे थप्पड़ मारे। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश पर चले नफरत के जूते का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह आज केंद्रीय मंत्री शरद पवार पर गुस्से के थप्पड़ पर आ गया।
भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में कभी नेताओं को जूता तो कभी थप्पड़ जड़ा गया है। एक इराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर 2008 में जूता फेंका था। इसके अलावा, गृहमंत्री पी चिदंबरम, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और चीनी राष्ट्रपति वेन जियाबाओ पर भी जूते फेंके जा चुके हैं।
मानता हूं कि हमारी सरकार बहरी है। उसे कम सुनाई देता है। इसका मतलब ये नहीं कि उसके कानों तले बम विस्फोट किया जाय। हिंसा किया जाय। जरा याद करें बापू को उन्होंने कब हिंसा की। पर सैकड़ों सालों से राज कर रहे अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिया। उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
भगत सिंह बनने वालों, क्या उनके विचारों को पढ़ा है। जिसने पढ़ा भी है तो उसे अपने अनुसार समझा है। यदि हम इस तरह की घटनाओं का सपोर्ट करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी युवा पीढ़ी हिंसक हो जाएगी। और ऐसे समय में यदि गलती से भी उनका रास्ता भटक गया, तो समूची सृष्टी पर संकट आ जाएगा।
4 comments:
are janab kya janta he en sab k liye doshi h en desh drohiyon k liye kuch bhi nahi kahenge jo humko hinsak hone pr majboor kr rahe h,,,, hum subah uthne se le kr rat ko sone ka tak tax pay krte h taki desh aage badhe na ki en netao ka account,,, mai to kahta hu abhi samay h sudhar jaye nahi aaj ek aage badha h kal lakho honge... sudharna en desh drohiyon ko chahiye humko nahi hum to apna kaam kr he rahe h ye bhrastachari bhi ab line pr aa jaye,,,
kya sir ji aap hmare anna ji ki burai kar rahe hai kya
Sir, We know that Mahatma Gandhi said "अहिंसा परमो धर्मः".
but i don't think that he told us complete thing.
Complete is here and it is "अहिंसा परमो धर्मः
धर्म हिंसा तथीव च"
means - "Non-violence is the ultimate dharma. So too is violence in service of Dharma."
Ummeed hai aapne ek kahawat bhi suni hogi ki "laato ke bhut baato se nhi maante"
chara ghotala,boforesh gotala,........etc,me kya hua hamare des ka kanoon net ke liye hi hai...janta ke liye nahi....ek aam admi ko neta marte hai to kush nahi hota per ek aam admi ek neta ko marta hai to sansad me hangama mach jaata hai...
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