Pillar of True Journalism to save Public Domain

Friday, December 3, 2010

जर्जर इमारतें

मौत के साए में जिंदगी दिल्ली के लक्ष्मी नगर में इमारत ढह जाने का जो दर्दनाक हादसा हुआ है, उसने सबको दहला कर रख दिया है। इसमें 70 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग जख्मी हुए। ऐसा ही कुछ मंजर गाजियाबाद सहित पूरे वेस्ट यूपी में भी देखने को मिल सकता है। यहां लक्ष्मी नगर जैसी कई जर्जर इमारतें हैं, जो कभी भी ढह कर मलबे में तब्दील हो सकती हैं। इमारतों में नीचे दुकानें हैं और ऊपर लोग रहते हैं। अगर भविष्य में यह इमारतें गिरीं तो तय है कि बड़ी संख्या में जान-माल का नुकसान होगा। इन बातों से बाखबर प्रशासन कन्नी काटता नजर आ रहा है, तो वहीं इन इमारतों का जन्मदाता जीडीए नींद में है। इमारतों में भूकंप के मामूली झटके बर्दाश्त करने की जरा भी कूवत नहीं है। भूकंप...

Monday, November 22, 2010

प्रेस की निष्पक्षता के लिए बहुआयामी संघर्ष छेडऩा होगा

16 नवंबर को राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस था। यह दिन भारत की पत्रकारिता के नाम था। पर यह भी अपने देश के अन्य दिवसों की तरह मनाया गया। जागरण जैसे अखबार ने अन्दर के पेज एक विज्ञापन छाप कर अपने जिम्मेदारी की इतिश्री समझ ली, तो जनसत्ता ने अगले दिन एक खबर लगाकर। अन्य राष्ट्रीय दिवसों की तरह इस दिन भी एक गोष्ठी काआयोजन किया गया। केरल भवन में दिल्ली यूनियन ऑफजर्नलिस्ट्स (डीयूजे) और डीएमसीटी की ओर से इसकाआयोजन किया गया था। पत्रकारिता बचाओ के तहत हुएआयोजन में ज्यादातर की राय थी कि देश में बहुसंख्यकलोगों का आज भी भरोसा प्रिंट मीडिया पर ही है। इसलिएइसे बचाए रखने के लिए सभी मीडियाकर्मियों को एकजुटहोना होगा। पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर नेकहा...

Wednesday, November 3, 2010

महिला सशक्तिकरण की हकीकत

महिलाओं को आरक्षण देने से उनका सशक्तिकरण होगा, यहीं सोचकर पंचायती चुनावों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया गया। और लोकसभा में 33 फीसद आरक्षण देने की मुखालफत हो रही है। पर महिलाओं की वास्तविक स्थिति में क्या फर्क आया है, इसका अंदाजा इस विज्ञापन को देखकर लगाया जा सकता है। देश की आधी आबादी को आरक्षण के सपने दिखाए गए, आरक्षण दिया गया और कानून को लागू भी किया गया। और लागू होने के बाद सरकार ने अपनी उपलब्धियां गिनवाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन किसी ने भी कानून लागू होने के बाद यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर योजनाओं का हाल क्या है?जिस आरक्षण कानून को लेकर सरकार बड़ी-बड़ी डींगें हांक रही है उसे कहां तक क्रियांवित किया जा रहा है? आखिर जिस...

Tuesday, November 2, 2010

सड़क पर रपट

अगर विकास का रास्ता सड़कों से ही होकर गुजऱता है, तो यह सवाल जेहन में बार-बार कौंधता है कि ऐसा क्यों हुआ कि देश की सबसे विकसित सड़कों के किनारे रहकर भी विकास के आधुनिक पैमाने पर वेस्ट यूपी के इलाके पिछड़े रह गए? दूसरी ओर अमेरीका का उदाहरण है, जहां सही मायने में सड़कों ने विकास की गति को ही बदल कर रख दिया। खासकर अमेरिका के 'रूट-66' ने इतिहास रच दिया। हमारी यात्रा का उद्देश्य भी यही समझना था कि आखिर सड़कों से विकास का कैसा नाता है?कहा जाता है कि विकास का पहिया सड़कों पर दौड़ता है। जिस देश में अच्छी सड़कों का विस्तार जितना ज्यादा होता है, उसका विकास दर भी उतना ही तेज होता है। इतिहास गवाह है कि जबसे सड़कों का विस्तार हुआ, तभी से सभ्यता, संस्कृति और...

Tuesday, October 19, 2010

रच दिया इतिहास

19वें कॉमनवेल्थ गेम्स में पदकों का शतक लगाकर भारत ने इतिहास रच दिया है। पहली बार भारत ने पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया है। वह भी अंग्रेजों को पछाड़ करके। इस गेम्स में 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदक मिले। गेम्स इतिहास पर नजर डालें तो भारत ने 1934 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीत कर अपना खाता खोला था। पदकों का शतक लगाने में पूरे 76 साल लग गए।अब बात करते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की। यह ना जाने कितनी ही प्रतिभाओं को जन्म दे चुका है और ना जाने कितनी और प्रतिभाएं इसमें छुपी हैं । अलग-अलग क्षेत्रों से कितने ही दिग्गज इस प्रदेश का नाम देश-विदेश में रोशन कर चुके हैंं और आगे भी करते रहेंगे। चाहे वो राजनीति...

Monday, October 18, 2010

हैं तैयार हम...

महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार आगाज और समापन समारोह के बाद आलोचकों के सुर बदले हुए नजर आ रहे थे।इंडिया एंड इंडियंस आर ग्रेट, यह कहना है राष्ट्रमंडल खेलों में शिरकत करने पहुंचे दुनियाभर की 71 टीमों के करीब तीन हजार सदस्यों का। जी हां, तमाम आलोचाओं और विवादों के बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन ने न सिर्फ विदेशी मीडिया, राजनीतिक बड़बोलों और आयोजन के लिए दूसरे देशों से सलाह लेने वालों, बल्कि पूरी दुनिया का मुंह बंद कर दिया है। महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार उद्घाटन...

Tuesday, October 5, 2010

दगाबाज 'ड्रैगन'

भारतीय सेना की उत्तारी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल को वीजा देने से इनकार कर चीन ने साफ कर दिया है कि उसकी दीर्घकालीन रणनीतिया मेलमिलाप की फौरी कोशिशों से प्रभावित नहीं होतीं। गुलाम कश्मीर में चीन के सैनिकों का जमावड़ा भी इसकी पुष्टि कर रहा है। चीन ने जनरल जसवाल को वीजा देने से यह कहकर इनकार किया है कि वह विवादास्पद कश्मीर में तैनात हैं। जनरल जसवाल जनरलों के स्तर पर होने वाली रक्षा वार्ताओं की प्रक्रिया में शामिल होने वाले थे। जनरल जसवाल को जवाब देकर चीन ने द्विपक्षीय वार्ताओं की गरिमा को कम कर दिया है। शायद वह वार्ताओं का एजेंडा, भागीदारी और स्वरूप तय करने को अपना एकाधिकार समझता है। कश्मीर को लेकर चीन के रवैये में पिछले...

Monday, October 4, 2010

सहकारी बना सरकारी

हम अन्नदाता हैं, लेकिन हमारे पेट खाली हैं। भूख इतनी की आत्महत्या तक से गुरेज नहीं। बच्चे न तो स्कूल जा पा रहे हैं और न विकास की दौड़ से कदम मिला पा रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बीते दो दशक में हजारों अन्नदाता, अन्न की कमी के कारण काल के गाल में समा गए। किसान को कभी वक्त पर खाद-बीज नहीं, तो कभी फसल का खरीददार नहीं मिलता। विकास को योजनाएं बनीं तो बहुत, पर धरातल पर सब फुस्स साबित हुई। किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए साठ के दशक में सहकारी आंदोलन की शुरूआत हुई। किसानों ने इसे एक पहल के रूप में देखा। सुखद कल की उम्मीद भी जगी। पर करीब 45 साल बीतने के बाद क्या हकीकत में किसान मजबूत हो पाया? क्या उसे उसकी फसल की सही कीमत मिल पाई? क्या सहकारी आंदोलन और समितियों ने दलालों की ताकत कम की? इन सभी सवालों के जवाब खोजती मुकेश कुमार गजेंद्र की रिपोर्ट :-अपने देश को 'भारतÓ और 'इंडियाÓ...
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