भारतीय सेना की उत्तारी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल को वीजा देने से इनकार कर चीन ने साफ कर दिया है कि उसकी दीर्घकालीन रणनीतिया मेलमिलाप की फौरी कोशिशों से प्रभावित नहीं होतीं। गुलाम कश्मीर में चीन के सैनिकों का जमावड़ा भी इसकी पुष्टि कर रहा है। चीन ने जनरल जसवाल को वीजा देने से यह कहकर इनकार किया है कि वह विवादास्पद कश्मीर में तैनात हैं। जनरल जसवाल जनरलों के स्तर पर होने वाली रक्षा वार्ताओं की प्रक्रिया में शामिल होने वाले थे। जनरल जसवाल को जवाब देकर चीन ने द्विपक्षीय वार्ताओं की गरिमा को कम कर दिया है। शायद वह वार्ताओं का एजेंडा, भागीदारी और स्वरूप तय करने को अपना एकाधिकार समझता है। कश्मीर को लेकर चीन के रवैये में पिछले दो-एक सालों में आया बदलाव बताता है कि भारत के संदर्भ में चीन की विदेश नीति का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के हितों को ध्यान में रखते हुए संचालित हो रहा है।
चीन मुद्दे पर पूरी बात से पहले एक पॉलिटिकल फ्लैश बैक। 1958 में जी. पार्थसारथी को चीन में भारत का राजदूत बनाया गया था। पार्थसारथी ने अपनी डायरी में लिखा है-चीन रवाना होने से पहले वह 18 मार्च 1958 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से रस्मी मुलाकात करने गए। पार्थसारथी के मुताबिक नेहरू ने कहा था-'तो जीपी जैसा कि फॉरेन ऑफिस ने तुमको बताया होगा 'हिंदी चीनी भाई-भाई', तुम इस पर यकीन नहीं करना। पंचशील और दीगर बातों के बावजूद मैं चीनियों पर यकीन नहीं करता। चीनी मगरूर, मक्कार, धोखा देने वाले वाले हैं। इनपर यकीन नहीं किया जा सकता है।'
सब जानते हैं कि 1962 में अपने भारत दौरे के दस दिन बाद ही तब के चीनी प्रधानमंत्री ने हिंदुस्तान पर हमले का आदेश दे दिया था। इस दगाबाजी से पंडित नेहरू को गहरा सदमा लगा। पहले तो उन पर फालिज का असर हुआ। फिर कुछ दिन बाद हार्ट अटैक, जिसने उनकी जान ले ली।
यह सब बताने का केवल इतना मतलब हैै कि चीन काफी लंबे वक्त से हमें धोखा दे रहा है। इस सच्चाई से हमारे हुक्मरां वाकिफ भी हैं। पेइचिंग तब से छल कर रहा है, जब से मुल्क पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। अरुणाचल प्रदेश, असम और कश्मीर के कई हिस्सों में उसकी दखलंदाजियों पर ब्रिटिश सरकार ने इसलिए कोई तवज्जो नहीं दी, क्योंकि उनके लिए इन जगहों की कोई अहमियत नहीं थी। दूसरे वह चीन से उलझना नहीं चाहते थे। तो इस तरह भूखा ड्रैगन लगातार हमारी जमीने हड़पता रहा है। वैसे तो चीन भारत की लाखों स्वक्वायर किलोमीटर जमीन दबाए बैठा है, लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह उसने पाकिस्तान के साथ साठगांठ कर पाक के कब्जे वाले इलाके में सड़क, सुरंग और रेल लाइन बिछाने का काम शुरू किया है, वह काबिल-ए गौर है। पीओके के गिलगिट और बाल्टिस्तान में चीन के ग्यारह हजार फौजी तैनात हो चुके हैं। बड़े-बड़े अर्थ मूवर, बुलडोजर और खुदाई की दीगर मशीनें गिलगिट पहुंचाई जा रही हैं। इस इलाके में आम पाकिस्तानियों को जाने की मनाही है।
आजकल पाकिस्तान और चीन में काफी छन रही है। दरअसल, गिलगिट और बाल्टिस्तान में चीन और पाकिस्तान की अपनी-अपनी जरूरतें हैं। इन दोनों इलाके में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ लोगों में बहुत गुस्सा है। और उनकी नाराजगी का लावा बहकर अक्वाम-ए-मुत्ताहिदा तक पहुंचे। पाकिस्तान सरकार उसको दबा देना चाहती है, भले ही इसके लिए उसे चीन की मदद लेनी पडï़े। चीनी आर्मी की वहां मुस्तैदी की वजह भी शायद यही है। दूसरे पाकिस्तान को चीन से एटमी तकनीक चाहिए। चीन के भी ढेरों मतलब उस इलाके में है। गिलगिट और बाल्टिस्तान में वह जो सुरंगें बिछा रहा है, उसका सीधा मतलब खाड़ी के मुमालिक से गैस और दीगर पेट्रोलियम अशिया की सप्लाई का रास्ता हासिल करना है। इसके साथ ही चीन अपने यहां बने खिलौने, इलेक्ट्रानिक्स के साज-ओ-सामान और कपड़े सीधे खाड़ी के मुल्कों तक पहुंचा सकेगा।
गिलगिट और बाल्टिस्तान में चीन की चहलकदमी का खुलासा करने वाले अमेरिकी अखबार 'द न्यूयार्क टाइम्सÓ को शक है कि चीन गिलगिट और बाल्टिस्तान में जो सुरंगें बना रहा है, उनमें से कुछ का इस्तेमाल वह फौजी साज-ओ-सामान और हथियार छिपाने के लिए भी कर सकता है। पड़ोसी और उसकी नजर में उसका दुश्मन नंबर वन भारत का आगे बढऩा उसे रास नहीं आ रहा है। भारत में आईटी और आउटसोर्सिंग पर मजबूत पकड़ ने चीन को चिढ़ा दिया है। चीन चाहता है कि आर्थिक विकास को छोड़ हिंदुस्तान अंदेशों में घिरा रहे। फौजी तैयारियों में अपना वक्त और पैसा जाया करे। शायद यही वजह है कि चीनी सरकार हिंदुस्तान को नीचा दिखाने और परेशान करने का कोई मौका चूकता नहीं। कुछ ही महीने पहले की बात है, चीन ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर एक संदेश जारी किया था, जिसमें सह गया था कि भारत कमजोर जम्हूरियत है। ऐसे हालात में इसे टुकड़ों में बांटा जा सकता है। इसके बाद शरारत की वहां के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली ने। इस अखबार की वेबसाइट पर संदेश डाला गया, 'भारत पर चीन के हमले के कितने इम्कानात हैं।Ó वैसे तो यह जताने के लिए यह संदेश जारी किया गया कि कुछ देश चीन और हिंदुस्तान के बीच जंग छिड़वाना चाहते हैं। क्यों जंग चाहते हैं, इसका कोई जिक्र अखबार ने मुनासिब नहीं समझा। इस आर्टिकल पर चीनी अवाम की राय भी मांगी गई। रायशुमारी में आधे से ज्यादा लोग हमले का समर्थन किए।
चीन जम्मू-कश्मीर को लेकर बड़ी सधी हुई चालें चल रहा है। वह हिंदुस्तान के इस हिस्से को विवादित राज्य मानता है, लेकिन खुलकर नहीं कहता। इसके पीछे बड़ी साफ वजह है। भारत का अक्साई चिन इलाका चीन के कब्जे में है। इसके अलावा 1963 से पचास हजार स्क्वैयर मील शक्सगाम इलाके को चीन ने पाकिस्तान से हड़प लिया है, वह जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा है। अब अगर चीन जम्मू-कश्मीर को भारत का विवादित हिस्सा मानता है, तो उसे शक्सगाम और अक्साई चिन पर से अपने दावों को खारिज करना होगा।
कश्मीर को लेकर चीन घिनौनी चाले चलता रहा है। चीन की इन तमाम कारस्तानियों को समझने के लिए हमें इतिहास के पन्ने पलटने होंगे। तिब्बत पर चीन पिछले कई सौ सालों से अपने पैने दांत पेवस्त किए हुए है। कभी एक बहाने तो कभी दूसरे, वह वहां अपने दखल को बनाए रखने में कामयाब होता रहा है। आजादी के बाद हिंदुस्तान ने मान लिया था के तिब्बत चीन का ही हिस्सा हैै। पता नहीं वह कौन-सी मजबूरी थी कि 1954 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसकी पुष्टी भी कर दी थी। गाहे-बगाहे नई दिल्ली पेइचिंग को बताता रहता है कि तिब्बत को लेकर उसके नजरिये में कोई बदलाव नहीं आया है। जब-जब चीन की सरकार ने भारत में रह रहे रूहानी गुरु दलाई लामा पर ऐतराज जताया, अपने जवाब में भारत यह बात नत्थी करना नहीं भूूला कि तिब्बत को लेकर उसके नजरिये में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। दरअसल चीनी दलाई लामा को पनाह दिए जाने के मसले पर भारत से बुरी तरह चिढ़ा हुआ है। हिंदुस्तान में रहते हुए दलाई लामा चीन की सरकार के खिलाफ जो मुहिम चला रहे हैं, उससे पूरी दुनिया में चीन की किरकिरी हो रही है। जाने-अंजाने दलाई लामा कई बार चीन के खिलाफ अमेरिकी कूटनीति की वजह बन जाते हैं। हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेर सबसे ज्यादा बार दलाई लामा से मिल चुके हैं। चीन चाहता है कि भारत दलाई लामा को ल्हासा लौटने पर मजबूर कर दे, लेकिन नई दिल्ली अपने स्टैंड पर कामय है कि दलाई लामा जब तक चाहें हिंदुस्तान में रह सकते हैं। भारत की यह नीति चीन को चिढï़ाए हुए है।
जहां तक सरहदी झगड़ों का सवाल है, चीन बड़ी चालाकी भरे कदम उठा रहा है। कुछ साल पहले तक भारत का कोई भी नेता अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर चला जाए तो चीन की पेशानी पर बल पडï़ जाते थे। फिर उसे लगा कि अरुणाचल के लोगों का रुझान तो पूरी तरह हिंदुस्तान की तरफ है, सो उसने धीरे-धीरे कर अरुणाचल पर अपने दावे से पीछे हटना शुरू कर दिया। साथ ही उसने उकसाने वाली शरारतें भी जारी रखीं। चीन ने अरुणाचल और लद्दाख में एलओसी पर कब्जे की कोशिशें और घुसपैठ की साजिशों को अंजाम देना शुरू कर दिया। आप को याद होगा कि कुछ दिन पहले, इन इलाकों की चट्टानों पर दर्ज पाया गया था-पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चायना। साथ ही उसने अपने चरवाहों को भारत की सरहद की तरफ भेजने की कोशिशें भी कीं। चूंकि हिंदुस्तानी फौज चीन के खेल को समझ रही है, इसलिए भड़कने के बजाय वह मामले को फ्लैग मीटिंग्स में उठा रही है।
अमेरिका एशिया के इस हिस्से में हो रही तमाम हलचलों पर पैनी नजर रखे हुए है। पेंटागन की हर हरकत पर नजर है। पेटांगन की यह रिपोर्ट परेशान करने वाली है कि चीन ने भारत से जुड़ी सरहदी चौकियों पर तैनात पुरानी मिसाइलों को हटाकर नए वर्जन की मिसाइलें भेजी हैं। कुछ लोगों को इस रिपोर्ट में अमेरिकी चालबाजी की बू मिल रही है। उनका मानना है कि दक्षिण एशिया में चीन की जबरदस्त फौजी तैयारियों का खौफ दिखाकर वह भारत को हथियार बेचने की जमीन तैयार कर रहा है।
बदलते रिश्ते
भारतीयों के लिए चीन का बार-बार बदलता रुख एक अजीब किस्म की पहेली है। 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाधी की चीन यात्रा के समय दोनों देशों के शत्रुतापूर्ण संबंधों में बदलाव आना शुरू हुआ था। उसी वर्ष सीमा विवाद का हल सुझाने के लिए संयुक्त कार्यबल बना। सन 1993 में उन्होंने आपसी तनाव घटाने और वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने पर सहमति जताई और 1996 में आपसी विश्वास बहाली के उपाय करने पर। अगर 90 के दशक से तुलना करें तो भारत और चीन के संबंधों में अहम बदलाव आ चुका है। आज चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।
बार-बार शत्रुतापूर्ण व्यवहार
वर्ल्ड एक्सपो-2010 शंघाई में भारतीय पैवेलियन में घुसकर चीनी अधिकारियों ने भारत की प्रचार सामग्री जब्त कर ली थी, क्योंकि उसमें भारत के मानचित्र थे। यह बात जुलाई, 2010 की है। मुद्दा अरुणाचल प्रदेश का था। लेकिन चीनी अधिकारियों का बर्ताव बेहद गैरजिम्मेदाराना था। चाहते तो वे एक पत्र लिखकर नाराजगी जताते, परंतु उन्होंने बिना बात करे सीधे कार्रवाई कर दी।
इसके पहले भी चीनी सेना के जवान हिमाचल प्रदेश के स्पीति और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख-तिब्बत में घुसपैठ कर स्थानीय लोगों को डरा-धमकाकर हमारे इलाके में अपने निशान छोड़ कर जा चुके हैं। इन सभी घटनाओं के बाद भी केंद्र सरकार चीन-भारत संबंधों में कोई खटास आई हो ऐसा नहीं मानती, यह आश्चर्य है। चीन विश्व ताकत बनने के सपने लगातार देख रहा है। वह अमेरिका की भी परवाह न करते हुए अपने सपनों को अंजाम देने में लगा हुआ है।
सामरिक संबंधों में वह पाकिस्तान के अधिक करीब आ रहा है। यदि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत को चुनौती देते हैं, तो यह बड़ा अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है। इसमें भारत को अमेरिका की मदद की आवश्यकता जरूर पड़ेगी। भारत के विदेश नीति-नियंताओं को चाहिए कि चीन की हर गतिविधि पर वे खुफिया नजर रखें। और समय रहते ठोस कार्रवाई करें वरना देश के लिए यह स्थिति बड़ी घातक है।
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