महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार आगाज और समापन समारोह के बाद आलोचकों के सुर बदले हुए नजर आ रहे थे।
इंडिया एंड इंडियंस आर ग्रेट, यह कहना है राष्ट्रमंडल खेलों में शिरकत करने पहुंचे दुनियाभर की 71 टीमों के करीब तीन हजार सदस्यों का। जी हां, तमाम आलोचाओं और विवादों के बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन ने न सिर्फ विदेशी मीडिया, राजनीतिक बड़बोलों और आयोजन के लिए दूसरे देशों से सलाह लेने वालों, बल्कि पूरी दुनिया का मुंह बंद कर दिया है। महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार उद्घाटन और समापन समारोह के बाद आलोचकों के सुर बदले हुए नजर आ रहे थे। आलम यह है कि खेल शुरू होने से पहले तक जो आयोजन में लेट-लतीफी व बदइंतजामी का रोना रो रहे थे, आज वही इसकी भव्यता और उत्कृष्टता से अभिभूत हैं। इतना ही नहीं इसका श्रेय लेने से भी पीछे नहीं हट रहे। दूसरा गौर करने वाला पहलू है 2020 में ओलंपिक की मेजबानी के लिए भारत की दावेदारी और मजबूत होना। इससे आलोचना करने वाली विदेशी मीडिया और प्रतिद्वंद्वी भी सकते में हैं।
19वें दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स-2010 के उदघाटन से पहले नकारात्मक प्रचार अभियान चला कर देशी व विदेशी मीडिया, विपक्षी नेताओं और तमाम आलोचकों ने देश की इज्जत पर बट्टा लगाने की कोशिश की। तीन अक्टूबर को उद्घाटन समारोह के भव्यतम आयोजन से लेकर 14 अक्टूबर की शाम रंगीन रोशनी में नहाए जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम की अप्रीतम छटा तक का सफर इतना खूबसूरत और यादगार रहा कि तमाम नकारात्मक प्रचारक खुद ही इस महाआयोजन की कामयाबी के कसीदे पढऩे को मजबूर हो गए। जो लोग कल तक दिल्ली को बीजिंग से सीख लेने की नसीहत दे रहे थे, आज इस पड़ताल में जुटे हैं बीजिंग ओलंपिक को किस तरह 19वें कॉमनवेल्थ गेम्स से बेहतर बनाया जाए। भारत ने सफल आयोजन से न सिर्फ अपनी क्षमताएं साबित की हैं बल्कि यह भी जता दिया कि सिर्फ कॉमनवेल्थ ही नहीं भारत किसी भी बड़े आयोजन को सफलता के साथ पूरा करने का माद्दा रखता है। जी हां, कॉमनवेल्थ के सफल आयोजन के बाद अब एक ही सवाल है कि क्या हम ओलंपिक की मेजबानी के लिए भी तैयार हैं। भारतीय ओलंपिक संघ पहले ही अनौपचारिक ढंग से 2020 ओलंपिक खेलों की मेजबानी की दावेदारी के संकेत दे चुका है। अब भारत सरकार की ओर से इस पर सहमति मिलने का इंतजार है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कहा है कि दिल्ली, ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल भी यही है कि क्या सचमुच दिल्ली ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है?
यदि भारत में आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों के इतिहास पर नजर डालें तो दिल्ली ने आजादी मिलने के चार साल से भी कम समय में 1951 में पहले एशियन गेम्स का सफल आयोजन किया था। फिर 1982 में 9 वे एशियन गेम्स का भव्य आयोजन दिल्ली में हुआ। दो एशियन गेम्स और फिर कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद दिल्ली ने अपनी क्षमताओं का लोहा तो मनवा ही लिया है लेकिन एशियन या कॉमनवेल्थ गेम्स के मुकाबले ओलंपिक का स्वरुप काफी बड़ा है। कॉमनवेल्थ में जहां कुल 71 देश शामिल है। वहीं ओलंपिक में दुनिया के लगभग सभी 205 देश शामिल होते हैं। कॉमनवेल्थ में कुल 17 खेल शामिल है जबकि ओलंपिक में 30 से ज्यादा। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओलंपिक खेलों के आयोजन में कितने वृहद पैमाने पर तैयारियों और आधारभूत सरंचनाओं की जरुरत पडेगी। दूसरी ओर ऐसे बडे आयोजनों का विरोध करने वाले लोग इसे भारत जैसे विकासशील देश के लिए पैसे की बर्बादी से ज्यादा कुछ नहीं मानते। उनका मानना है कि इन खेल आयोजनों पर हजारों करोड रुपया बहाने के बदले यही पैसा यदि देश के विकास में लगाया जाए तो करोडों देशवासियों को इसका लाभ मिलेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाडिय़ों की नाकामी का भी हवाला दिया जाता है। ओलंपिक खेलों के 114 साल के इतिहास में भारत ने अब तक कुल 20 पदक जीते हैं, जिसमें व्यक्तिगत स्वर्ण पदक मात्र एक है। आलोचकों का एकमात्र सवाल यही है कि खेलों में इस लचर प्रदर्शन के बल पर क्या आम जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ रुपये फूंक देना तर्कसंगत है?
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत विश्व पटल पर आज बड़ी तेजी से एक आर्थिक महाशक्ति के रुप में उभर रहा है। किसी भी बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजन की सफल मेजबानी का पूरा माददा हम रखते हैं। यदि ओलंपिक की मेजबानी हमें मिलती है तो हम इसका आयोजन भी पूरी सफलता के साथ कर सकते हैं लेकिन इससे जुड़े खर्च की उपयोगिता और प्रासंगिकता से जुड़े सवाल भी बेमानी नहीं हैं।
ओलंपिक खेलों की मेजबानी सौंपने के संबंध में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ का कहना है कि मेजबानी किसी शहर को सौंपने का फैसला किसी भी खतरे को नजरअंदाज कर नहीं लिया जा सकता क्योंकि खेलों के इतने बड़े आयोजन में बहुत बड़ी जिम्मेदारी दांव पर लगी होती है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष जैक्स रोगे का कहना है कि भले ही हमारी प्राथमिकता खेलों को दुनिया के हर छोर तक पहुंचाने की रही है लेकिन हमारी पहली चिंता खिलाडिय़ों के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया कराने की है। ओलंपिक खेलों का एकमात्र उददेश्य है खिलाडिय़ों को विश्वस्तरीय अनुभव दिलाना। हमारी पहली प्राथमिकता होती है गुणवत्ता। यदि गुणवत्ता के लिए हमें अधिक विकसित देशों में जाना पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं है। खिलाडिय़ों के पास अपना सपना पूरा करने के लिए मात्र एक या दो मौके होते हैं। हम उन्हें यह नहीं कह सकते कि 'ओह, हमने इस बार किसी ऐसी वैसी जगह में खेलों का आयोजन कर लिया है अगली बार तुम्हें ज्यादा बढिय़ा मौका मिलेगा।Ó एक खिलाड़ी के लिए अगली बार कभी नहीं आता। लेकिन रोगे ने दिल्ली को सिरे से खारिज नहीं किया है। कुछ शुरुआती परेशानियों के बावजूद दिल्ली ने जिस भव्यता और दक्षता के साथ कॉमनवेल्थ गेम्स का सफल आयोजन किया हे, उससे रोगे काफी प्रभावित हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के उद्घाटन समारोह में शामिल होने के बाद उन्होंने फिर से दुहराया है कि भारत ने भविष्य में ओलंपिक की मेजबानी की दावेदारी के लिए मजबूत नींव रखी है। उनका कहना है कि 2004 के एथेंस ओलंपिक शुरू होने के पहले की स्थिति काफी डरावनी थी। लेकिन आखिरकार ग्रीसवासियों ने अपनी लगन और कड़ी मेहनत से एक सफल और अच्छे खेलों का आयोजन कर दिखाया। अंतिम समय में जाकर एथेंस ओलंपिक काफी सफल साबित हुआ। इसलिए दिल्ली में भी ऐसा हो सकता है।
कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के लिए दिल्ली में 15 विश्वस्तरीय स्टेडियम हैं जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप हैं। इसके अलावा अन्य विश्वस्तरीय सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। राजधानी दिल्ली की गिनती दुनिया के कुछ गिने चुने शहरों में होती है। हाल ही में बना इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे का टी-3 टर्मिनल, आकार और सुवधिाओं के लिहाज से दुनिया के पांच बेहतरीन हवाई अडडों में शामिल है। हवाई मार्ग से दिल्ली दुनिया के हर कोने से सीधी जुड़ी है। मेट्रो टे्रन के विस्तार के बाद अब दिल्ली में भी सार्वजनिक परिवहन की विश्वस्तरीय सुविधा उपलब्ध है। सड़कों और फ्लाइओवरों के विस्तार से यातायात व्यवस्था बेहतरीन हुई है। दिल्ली के बाजारों की गिनती दुनिया के मशहूर बाजारों में होती है। यहां के पांच और सात सितारा होटलों की भव्यता और मेहमानवाजी की पूरी दुनिया कायल है। दिल्ली के लोगों ने अपने जोश, जूनून और अपनी मेहमानबाजी और अनुशासन की झलक इन कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दुनिया को दिखा दी है। सितम्बर से लेकर मार्च तक दिल्ली का मौसम किसी भी तरह के आयोजन के लिए खुशगवार होता है। दिल्ली में मौजूद बुनियादी और स्वास्थ्य सुविधाएं किसी भी विकसित देश में उपलब्ध सुविधाओं को चुनौती देेने की स्थिति में हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि दिल्ली ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है।
ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने को तैयार है दिल्ली
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के मुताबिक दिल्ली ओलंपिक खेलों की मेजबानी कर सकती है। उनका कहना है कि दिल्ली में विश्वस्तर के स्टेडियम एवं अन्य आधारभूत ढांचे तैयार हो चुके हैं और दिल्ली को अब ओलंपिक की मेजबानी करनी है। हालांकि उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि उन्हें तो पूरा भरोसा है लेकिन ओलंपिक गेम्स की मेजबानी का निर्णय अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और भारत सरकार को करना है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए किए गए तमाम विकास कार्यों के बाद दिल्ली ने अपने आप को इस स्थिति में खड़ा कर लिया है कि यदि ओलंपिक खेलों का यहां आयोजन होता है तो वे पूरी तरह तैयार है और अब उन खेलों के लिए कोई अलग से काम नहीं करना पडेगा क्योंकि हमारा बुनियादी ढांचा न केवल विश्वस्तरीय हो गया है बल्कि कई मायनों में हम कई देशों से आगे हो गए है। श्रीमति दीक्षित ने कहा कि ओलंपिक खेलों के लिए हमारी तरफ से पूरी तैयार है।
भारतीय ओलंपिक संघ और कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी के मुताबिक कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी से दिल्ली बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के मामले में पांच साल आगे निकल चुकी है और किसी भी बड़े आयोजन की मेजबानी का इसमें माद्दा है।
एक कदम आगे से साभार
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