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Tuesday, October 19, 2010

रच दिया इतिहास


19वें कॉमनवेल्थ गेम्स में पदकों का शतक लगाकर भारत ने इतिहास रच दिया है। पहली बार भारत ने पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया है। वह भी अंग्रेजों को पछाड़ करके। इस गेम्स में 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदक मिले। गेम्स इतिहास पर नजर डालें तो भारत ने 1934 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीत कर अपना खाता खोला था। पदकों का शतक लगाने में पूरे 76 साल लग गए।
अब बात करते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की। यह ना जाने कितनी ही प्रतिभाओं को जन्म दे चुका है और ना जाने कितनी और प्रतिभाएं इसमें छुपी हैं । अलग-अलग क्षेत्रों से कितने ही दिग्गज इस प्रदेश का नाम देश-विदेश में रोशन कर चुके हैंं और आगे भी करते रहेंगे। चाहे वो राजनीति का अखाड़ा हो या फिर खेल का मैदान, सभी जगह से शोहरत ही बटोरी है।
इसी प्रदेश का एक और हिस्सा है, जहां कामयाबियों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जी हां पश्चिमी उत्तर प्रदेश। आज वेस्ट यूपी की तस्वीर बिलकुल बदल चुकी है। यहां से भी लोग देश विदेश में अपना और अपने इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं । तरह तरह की प्रतिभाओं का हुनर रखने वाले ये लोग अब आगे आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। बात अगर वेस्ट यूपी से निकलती खेल हस्तियों की जाए तो भी यह पीछे नहीं है। अभी हाल ही में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में मेरठ की अलका तोमर जिन्होंने महिला कुश्ती प्रतियोगिता 59 किग्रा.भार वर्ग में स्वर्ण जीतकर देश और राज्य दोनों का नाम रोशन किया। अलका को सन् 2007 में अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसी तरह बागपत के दामाद इमरान हसन ने भी पुरुष 50 मी. राइफल तीन पोजीशन पेयर में स्वर्ण जीता। कामयाबी की स्याही से इतिहास के पन्नों पर रोज नए आयाम गढ़े जा रहे हैं।
अब बात करते हैं वेस्ट यूपी की उन प्रतिभाओं की जो तैयार हैं अपने जोश-ओ-खरोश के साथ किसी भी मुकाम को हासिल करने के लिए। मुजफ्फरनगर के बॉडी बिल्डर विकास चौधरी ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर वल्र्ड बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में अपनी जगह बनाकर जिले का नाम रोशन किया है। लाखों दिलों की धड़कन क्रिकेट में भी वेस्ट यूपी पीछे नहीं है। अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम के चयन में सहारनपुर की भावना तोमर को टीम का कप्तान बनाया गया है। निशानेबाजी में मुजफ्परनगर के नीरज राणा ने नौंवी निशानेबाजी स्टेट चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए एक स्वर्ण समेत पांच पदक हासिल किए।
प्रदेश में तैयार होती प्रतिभाओं की यह नई पौध आने वाले वक्त में खेल जगत के लिए वरदान साबित होंगी। अगर इनकी दिशा और दशा दोनों पर ध्यान दिया जाए तो कल ये भी देश का नाम रोशन करने में कोई कमी नहीं छोडेंगे। बशर्त कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों इन पर ध्यान आकर्षित करे, और इनको आगे बढऩे का हौसला दें।
उत्तर प्रदेश की गणना राजनीतिक रूप से सशक्त राज्यों में की जाती है। इसने देश को कई प्रधानमंत्री सहित अनेक मजबूत राजनेता दिए हैं। पर इस प्रदेश में राजनेताओं की कमजोर इछाशक्ति के कारण यहां का चौमुखी विकास नहीं हो पाया। मसलन खेल को ही लें। प्रदेश से गिने-चुने खिलाड़ी ही नेशनल या इंटरनेशनल लेवल पर खेल पाएं हैं। वह भी अपनी बदौलत। उनकी उपलब्धी में प्रदेश सरकार का कोई रोल नहीं होता है। इस बार के कॉमनवेल्थ गेम्स का ही उदाहरण लें। इस गेम्स में यूपी के अलका तोमर (कुश्ती), ओंकार (निशानेबाजी), रेणु बाला (भारोत्तोलन) और इमरान हसन खान (निशानेबाजी) को स्वर्ण पदक मिला। रितुराज चटर्जी (तीरन्दाजी), सोनिया चानू (भारोत्तोलन) को रजत तथा आशीष (जिम्नास्टिक) में रजत और कांस्य पदक मिला है। इन सभी खिलाडिय़ों ने अपने दम इस पदक को हासिल किया है। इसमें सरकार का सहयोग नामात्र का ही रहा है। खिलाडिय़ों के पदक जीतने पर केवल मुक्तकंठ से सराहना करने वाली यूपी सरकार ने भारी दबाव के बीच आखिरकार पदक विजेताओं के लिए पुरस्कारों की घोषणा कर ही दी।
इस घोषणा के तहत पदक जीतने वाले उत्तर प्रदेश के मूल निवासी विजेताओं को कांशीराम अंतरराष्ट्रीय खेल पुरस्कार योजना के तहत पुरस्कृत किया जाएगा। इस पुरस्कार योजना के तहत खेलों की एकल प्रतियोगिताओं में स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक जीतने वाले प्रदेश के मूल निवासियों को क्रमश 15 लाख, 10 लाख व आठ लाख रुपये दिये जाएंगे। वहीं टीम खेलों में स्वर्ण पदक के लिए 10 लाख रुपये, रजत के लिए आठ लाख रुपये और कांस्य पदक के लिए छह लाख रुपये दिये जाएंगे।
गौरतलब है कि ओलम्पिक, कॉमनवेल्थ एशियन, विश्व कप खेलों में पदक जीतने वाले यूपी के मूल निवासी खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य सरकार ने कांशीराम अंतरराष्ट्रीय खेल पुरस्कार योजना शुरू की थी। योजना के तहत पुरस्कृत होने के लिए यूपी का मूल निवासी उस व्यक्ति को माना जाएगा जो यूपी का वास्तविक मूल निवासी है। यूपी के किसी मान्यताप्राप्त विद्यालय या महाविद्यालय या विश्वविद्यालय या स्पोर्ट्स हॉस्टल का कम से कम दो वर्ष तक छात्र रहा हो। किसी मान्यताप्राप्त शिक्षण संस्थान की तरफ से अंतरराष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका हो या जो यूपी के किसी मान्यताप्राप्त क्रीड़ा संघ या स्पोर्ट्स बोर्ड द्वारा नामित होकर राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता में प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुका हो। इस शासनादेश के तहत किसी भी खिलाड़ी को उसके द्वारा एक से अधिक पदक जीतने की दशा में केवल एक पदक के अनुरूप पुरस्कार राशि दी जाएगी।
खेलों पर डोपिंग का 'डंक'
किसी भी देश के खिलाडिय़ों का डोपिंग में पकड़े जाना बहुत ही शर्म की बात है। इसका खामियाजा न सिर्फ खिलाडिय़ों को बल्कि उस खेल से जुड़ी फेडरेशन और देश को भी भुगतना पड़ता है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में डोपिंग केकई मामले सामने आए। पहला मामला था महिलाओं की 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक विजेता नाइजीरिया की ओसयेमी ओलुडमोला का। आस्ट्रेलिया की सैली पियर्सन को अयोग्य करार दिये जाने के बाद स्वर्ण पदक जीतने वाली ओसयेमी को शक्तिवर्धक दवा लेने के टेस्ट कारण पॉजीटिव पाया गया था। डोपिंग के दूसरे मामले में नाइजीरिया के ही 110 मीटर बाधा दौड़ के एथलीट सैमुअल ओकोन का डोप टेस्ट पॉजिटिव पाया गया है। ओकोन को मेथिलहेक्साएमीन लेने का दोषी पाया गया था। डोपिंग के तीसरे मामले में फंसी भारत की एथलीट रानी यादव। रानी यादव पैदल चाल स्पर्धा में छठे स्थान पर रही थी। पाजीटिव पाए जाने के बाद रानी को राष्ट्रमंडल खेलों से निलंबित कर दिया गया है।
सबसे ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि भारत खुद आयोजक देश है। इससे लगता है कि कुछ खिलाड़ी न तो इस आयोजन को लेकर गंभीर हैं और न ही उन्हें देश की बदनामी की कोई परवाह है। खेलों में जब से डोप टेस्ट की व्यवस्था बनी है और उसे अनिवार्य किया गया है, तकरीबन सभी देशों में यह सावधानी बरती जाती है कि उनके खिलाड़ी गलती से भी वे प्रतिबंधित दवाएं नहीं लें जिनसे डोप टेस्ट में उन्हें पॉजिटिव पाए जाने की संभावना बने। लेकिन ऐसा लगता है कि कई खिलाड़ी अभी भी डोप टेस्ट को काफी हल्के में लेते हैं।
भारत की मेडलों की लिस्ट और लंबी होती अगर भारत के खिलाड़ी गेम्स शुरू होने से पहले ही टेस्ट में पॉजीटिव न पाए जाते। गेम्स शुरू होने से पहले ही पश्चिमी यूपी के जिला बागपत के पहलवान राजीव तोमर डोप टेस्ट में पाजीटिव पाए गए थे। पहलवान तोमर से भारत को गोल्ड की उम्मीद थी जो अधूरी रह गई।
खिलाड़ी सामान्य सर्दी जुकाम की दवाई लेते समय भी इस बात की सावधानी नहीं बरतते कि वह दवा प्रतिबंधित दवाओं की लिस्ट में है या नहीं। यह भी यकीनी बनाया जाना चाहिए कि खिलाडिय़ों के डोप में पॉजीटिव पाए जाने का असल गुनहगार कौन है। अगर कोच या टीम के डॉक्टर की तरफ से ऐसी लापरवाही हुई है, तो उन्हें भी दंडित किया जाना चाहिए। सिर्फ दोषी खिलाडिय़ों का निलंबन ही पर्याप्त नहीं है।

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