19वें कॉमनवेल्थ गेम्स में पदकों का शतक लगाकर भारत ने इतिहास रच दिया है। पहली बार भारत ने पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया है। वह भी अंग्रेजों को पछाड़ करके। इस गेम्स में 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदक मिले। गेम्स इतिहास पर नजर डालें तो भारत ने 1934 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीत कर अपना खाता खोला था। पदकों का शतक लगाने में पूरे 76 साल लग गए।अब बात करते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की। यह ना जाने कितनी ही प्रतिभाओं को जन्म दे चुका है और ना जाने कितनी और प्रतिभाएं इसमें छुपी हैं । अलग-अलग क्षेत्रों से कितने ही दिग्गज इस प्रदेश का नाम देश-विदेश में रोशन कर चुके हैंं और आगे भी करते रहेंगे। चाहे वो राजनीति...
Tuesday, October 19, 2010
Monday, October 18, 2010
हैं तैयार हम...
महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार आगाज और समापन समारोह के बाद आलोचकों के सुर बदले हुए नजर आ रहे थे।इंडिया एंड इंडियंस आर ग्रेट, यह कहना है राष्ट्रमंडल खेलों में शिरकत करने पहुंचे दुनियाभर की 71 टीमों के करीब तीन हजार सदस्यों का। जी हां, तमाम आलोचाओं और विवादों के बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन ने न सिर्फ विदेशी मीडिया, राजनीतिक बड़बोलों और आयोजन के लिए दूसरे देशों से सलाह लेने वालों, बल्कि पूरी दुनिया का मुंह बंद कर दिया है। महाआयोजन में शामिल होने वाले लोगों के चेहरों की चमक ने बता दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि तमाम मानकों व सुविधाओं के नजरिये से भी पूरी तरह फिट। राष्ट्रमंडल खेलों के शानदार उद्घाटन...
Tuesday, October 5, 2010
दगाबाज 'ड्रैगन'

भारतीय सेना की उत्तारी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल को वीजा देने से इनकार कर चीन ने साफ कर दिया है कि उसकी दीर्घकालीन रणनीतिया मेलमिलाप की फौरी कोशिशों से प्रभावित नहीं होतीं। गुलाम कश्मीर में चीन के सैनिकों का जमावड़ा भी इसकी पुष्टि कर रहा है। चीन ने जनरल जसवाल को वीजा देने से यह कहकर इनकार किया है कि वह विवादास्पद कश्मीर में तैनात हैं। जनरल जसवाल जनरलों के स्तर पर होने वाली रक्षा वार्ताओं की प्रक्रिया में शामिल होने वाले थे। जनरल जसवाल को जवाब देकर चीन ने द्विपक्षीय वार्ताओं की गरिमा को कम कर दिया है। शायद वह वार्ताओं का एजेंडा, भागीदारी और स्वरूप तय करने को अपना एकाधिकार समझता है। कश्मीर को लेकर चीन के रवैये में पिछले...
Monday, October 4, 2010
सहकारी बना सरकारी
हम अन्नदाता हैं, लेकिन हमारे पेट खाली हैं। भूख इतनी की आत्महत्या तक से गुरेज नहीं। बच्चे न तो स्कूल जा पा रहे हैं और न विकास की दौड़ से कदम मिला पा रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बीते दो दशक में हजारों अन्नदाता, अन्न की कमी के कारण काल के गाल में समा गए। किसान को कभी वक्त पर खाद-बीज नहीं, तो कभी फसल का खरीददार नहीं मिलता। विकास को योजनाएं बनीं तो बहुत, पर धरातल पर सब फुस्स साबित हुई। किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए साठ के दशक में सहकारी आंदोलन की शुरूआत हुई। किसानों ने इसे एक पहल के रूप में देखा। सुखद कल की उम्मीद भी जगी। पर करीब 45 साल बीतने के बाद क्या हकीकत में किसान मजबूत हो पाया? क्या उसे उसकी फसल की सही कीमत मिल पाई? क्या सहकारी आंदोलन और समितियों ने दलालों की ताकत कम की? इन सभी सवालों के जवाब खोजती मुकेश कुमार गजेंद्र की रिपोर्ट :-अपने देश को 'भारतÓ और 'इंडियाÓ...
Saturday, October 2, 2010
साक्षात्कार - श्री सोमपाल सिंह शास्त्री
इन दिनों भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों में खासा आक्रोश है। वह नहीं चाहते कि उनकी जमीन ली जाए, लेकिन सरकार विकास की दुहाई दे रही है। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?धीरे-धीरे कृषि योग्य भूमि को दूसरे कार्यों में परिवर्तित किया जा रहा है। सरकार आधारभूत अवसन्रचनाओं (सड़क, अस्पताल, हवाईअड्डे आदि) के साथ ही शहरीकरण और औद्योगिकरण के लिए जमीन ले रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन खेती की सारी भूमि समाप्त हो जाएगी। खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। आजादी के समय प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता 0.36 हेक्टेयर थी। घटते-घटते 90 के दशक तक भू-उपलब्धता 0.16 रह गई। वर्तमान में प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता 0.13 हेक्टेयर है। जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उसे देख कर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 तक प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता 0.09 ( 900 मीटर) रह जाएगी। इतनी जमीन खाद्यान्न पैदा करने...
फिर गरमाई राम नाम की राजनीति
इन दिनों अयोध्या मसला फिर से सुर्खिओं में है। वजह है 30 सितंबर को आने वाला फैसला। फैसले को लेकर जहां केंद्र और राज्य सरकार सतर्क हैं, वहीं सपा और भाजपा सहित विभिन्न राजनीतिक दल भी ध्यान लगाए हुए हैं। बिहार चुनाव से पहले वीएचपी एक बार फिर इसे मुद्दा बनाने में जुट गई है। हालांकि विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि इस मामले का समाधान कानून लाकर ही किया जा सकता है, लेकिन उसने ये भी साफ कर दिया है कि अदालत का फैसला जो भी आए, विवादित जगह पर राम मंदिर ही बनेगा। सनद रहे कि अयोध्या में विवादास्पद जगह पर मालिकाना हक को लेकर अदालत 30 सितंबर को फैसला सुनाने वाली है। वीएचपी इस मुद्दे पर पिछले कई दिनों से सक्रिय है। लगातार प्रेस विज्ञप्तियों के जरिए मीडिया को संदेश भेजे जा रहे हैं। अपने कार्यकर्ताओं को भी एक बार फिर लामबंद करने की कोशिश की जा रही है। लंबी कानूनी जिरह के बाद आने वाले अदालती फैसले से पहले ही...