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Saturday, October 2, 2010

फिर गरमाई राम नाम की राजनीति

इन दिनों अयोध्या मसला फिर से सुर्खिओं में है। वजह है 30 सितंबर को आने वाला फैसला। फैसले को लेकर जहां केंद्र और राज्य सरकार सतर्क हैं, वहीं सपा और भाजपा सहित विभिन्न राजनीतिक दल भी ध्यान लगाए हुए हैं। बिहार चुनाव से पहले वीएचपी एक बार फिर इसे मुद्दा बनाने में जुट गई है। हालांकि विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि इस मामले का समाधान कानून लाकर ही किया जा सकता है, लेकिन उसने ये भी साफ कर दिया है कि अदालत का फैसला जो भी आए, विवादित जगह पर राम मंदिर ही बनेगा। सनद रहे कि अयोध्या में विवादास्पद जगह पर मालिकाना हक को लेकर अदालत 30 सितंबर को फैसला सुनाने वाली है। वीएचपी इस मुद्दे पर पिछले कई दिनों से सक्रिय है। लगातार प्रेस विज्ञप्तियों के जरिए मीडिया को संदेश भेजे जा रहे हैं। अपने कार्यकर्ताओं को भी एक बार फिर लामबंद करने की कोशिश की जा रही है। लंबी कानूनी जिरह के बाद आने वाले अदालती फैसले से पहले ही वो हिंदूवादी बयान देकर माहौल बिगाडऩे में जुट गई हंै। एनडीए के शासनकाल के दौरान मंदिर बनवाने की मांग पर चुप रहने वाली वीएचपी को लग रहा है कि अब इस मुद्दे को हवा देने का सही मौका है। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंहल का कहना है कि अयोध्या में राममंदिर के मुद्दे को वोट की राजनीति से जोड़कर भाजपा ने इस आंदोलन का बहुत नुकसान पहुंचाया है। इसका उसे प्रायश्चित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राममंदिर का मुद्दा राजनीतिक मसला हो नहीं सकता। यह देश की करोड़ों, करोड़ जनता की आस्था से जुड़ा हुआ मामला है। इसलिए संसद में सर्वसम्मति से कानून बनाकर अयोध्या में राममंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए।भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि अयोध्या में राम जन्म भूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण पार्टी की प्रतिबद्ध है। मगर पार्टी विवादित स्थल के स्वामित्व विवाद पर उच्च न्यायालय का निर्णय आ जाने तक इस बाबत कोई टिप्पणी नहीं करेगी। अयोध्या में विवादित स्थल के स्वामित्व विवाद पर इसी महीने उच्च न्यायालय के संभावित निर्णय के बारे में श्री सिंह ने कहा कि अदालत का जो भी निर्णय होगा ठीक ही होगा। रणनीति पार्टी का अंदरूनी मामला है जिसे अंदरूनी ही रखा जाता है। अयोध्या मामले में उच्च न्यायालय के संभावित निर्णय के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही सुरक्षा व्यवस्था के बारे में सवाल पर सिंह ने कहा कि कई बार अति सावधानी का उल्टा असर पडता है। बेवजह घबराहट का वातावरण बन रहा है। उन्होंने कहा कि आज जो हालात पैदा हुए है, वे वोट बैंक की राजनीति की देन है।राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि भाजपा सब कुछ छोड़ सकती है, लेकिन भगवान राम को कभी नहीं। उन्होंने कहा, भगवान राम हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं। हम सब कुछ छोड़ सकते है, उन्हें नहीं। उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को चाहे उसका धर्म और मजहब कुछ भी हो। यह याद रखना चाहिए कि भगवान राम देश की सांस्कृतिक पहचान है। उन्होंने यहां तक कहा कि मुसलमानों ने भी बहुत बड़ी संख्या में लोग यह मानते है कि भगवान राम अयोध्या में ही पैदा हुए थे। मगर थोड़े से लोगों ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने कहा कि देश के कुछ राजनैतिक दल अयोध्या मसले को अपने वोट बैंक का साधन मानते हैं। वह नहीं चाहते है कि यह विवाद खत्म हो। इस विवाद का हल आपसी समझ और सूझ-बूझ से निकाला जाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं हो सकता है तो दोनों समुदायों (हिन्दू और मुसलमान) को चाहिए की वह जमीन के मालिकाना हक के लिए इसी माह अदालत के आने वाले निर्णय का सम्मान करें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अयोध्या का मसला तो सौ साल में भी हल नहीं हो पाएगा, क्योंकि हाईकोर्ट का फैसला जिसके भी विपक्ष में जाएगा वह सुप्रीम कोर्ट जाएगा। हाईकोर्ट का फैसला आने में तो 60 साल लग ही गए हैं, सुप्रीम कोर्ट में भी 40 साल से अधिक का समय लग जाएगा। श्री दास ने कहा कि इस मुद्दे को यहीं रोक देना चाहिए और देश व समाज के बुद्धिजीवी लोगों को मिल कर इसका समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि अयोध्या के लोग इस मसले का हल अकेले नहीं खोज सकते क्योंकि वहां के कुछ साधु भी नहीं चाहते की यह झगड़ा सामाप्त हो। यह साधू नारा लगाते हैं कि पुजारी हटाओ, मंदिर बचाओं। मंदिर के नाम पर लोगों को उकसाने वाले केवल वोट की राजनीति कर रहे है। उन्हें मंदिर निर्माण से कोई मतलब नहीं। श्रीदास ने हिंदू और मुस्लिम सभी से कोर्ट के आने वाले फैसले का सम्मान करने की अपील की करते हुए कहा कि वह किसी के बहकावे में न आवें और एक साथ मिलकर देश की विकास की धारा को गति प्रदान करें।अनहोनी से निपटने की पूरी है तैयारीअयोध्या फैसले पर संभावित घटनाओं के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह तैयार है। इस मसले पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री मायावती ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल बीएल जोशी से मुलाकात की। अयोध्या विवाद के सम्भावित फैसले को लेकर चर्चा की। यह भी बताया कि अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति न बिगडऩे पाए, इसको लेकर उनकी सरकार ने क्या-क्या तैयारी की है। मुख्यमंत्री ने अतिरिक्त सुरक्षा बल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र से अनुरोध भी किया है।कानूनी लड़ाई जारी रहेगी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने कहा है कि अयोध्या विवाद पर उसकी कानूनी लड़ाई जारी रहेगी। कमेटी का मानना है कि फैसला किसी के पक्ष में आए, दूसरा पक्ष उसके खिलाफ अपील तो दायर ही करेगा और इस तरह कानूनी लड़ाई के अभी जारी रहने की पूरी सम्भावना है।सुरक्षा व्यवस्था को लेकर केंद्र भी सतर्कप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संभावित फैसले पर अपने वरिष्ठ मंत्रियों से चर्चा की। बैठक में संभावित परिस्थितियों को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से किए गए उपायों व केंद्रीय स्तर पर की गई सुरक्षा व्यवस्था की चर्चा की गई थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसले के बाद संभावित कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए पहले ही केंद्र सरकार से अर्धसैनिक बल की 485 कंपनियां मांगी है। एक कंपनी में 112 से लेकर 125 अर्धसैनिक बल कर्मी होते हैं। इसके लिहाज से केंद्र सरकार से राज्य सरकार ने 50 हजार से अधिक अर्धसैनिक बलकर्मी मांगा है। बैठक में उपस्थित सभी इस बात पर सहमत थे कि कानून-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार को हरसंभव मदद दी जाए, जिससे वह किसी भी गड़बड़ी के लिए केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश न करे। इसके अलावा फैसले के बाद उप्र के अलावा दूसरे राज्यों में उसके संभावित असर पर भी चर्चा की गई। यह सुनिश्चित किया गया कि हर राज्य को इस मामले के संदर्भ में सतर्क रहने की लिए कहा जाए। मालिकाना हक पर साठ साल बाद आएगा फैसलासितंबर मध्य में आने वाला फैसला इस मसले पर साठ साल पहले दायर की गई याचिका पर लिया जाना वाला निर्णय होगा। इस मसले पर गठित स्पेशल बेंच जिसमें जस्टिस एसयू खान-जस्टिम सुधीर अग्रवाल- जस्टिस डीवी शर्मा शामिल हैं, रामजन्मभूिम के मालिकाना हक को लेकर अपना निर्णय देंगे। वर्ष 1950 में सबसे पहले गोपाल सिंह विशारद ने विवादित भूमि पर भगवान राम की पूजा-अर्चना की इजाजत देने को लेकर याचिका दायर की थी। इसी साल परमहंस रामचरण दास ने भी इसी तरह की इजाजत संबंधी दूसरी याचिका दायर की थी। हालांकि बाद में यह याचिका वापस ले ली गई थी। वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी याचिका दायर करते हुए भूमि हस्तांतरित करने की मांग की थी। चौथी याचिका 1961 में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दायर करते हुए भूमि हस्तांतरित करने की मांग की और इसे मस्जिद भूमि घोषित करने की मांग की। 1989 में पांचवीं याचिका भगवान श्रीरामलला विराजमान ने दायर करते हुए भूमि हस्तांतरण की मांग की और इसे मंदिर घोषित करने की मांग की।निर्णय के आधार बिंदुअदालत मूलत तीन बिंदुओं पर अपना निर्णय देगी। इसमें सबसे पहला और मुख्य बिंदु यह है कि क्या अयोध्या की विवादित भूमि राम मंदिर ही है। दूसरे, क्या मस्जिद मंदिर के अवशेषों से बनी थी। तीसरे, क्या मस्जिद इस्लाम के नियमों अनुरूप बनी थी। माना जा रहा है कि अदालती फैसले के बाद इस मसले पर संवेदनशील स्थिति बन सकती है।

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