
बज गई चुनावी रणभेरी
चढ़ गईं उनकी त्योरियां...
नाचने लगी उनकी आंखें
बजने लगे उनके गाल...
बढ़ गई गरीबों की पूछ
आम आदमी हुआ खास...
बहुर गए इनके दिन
झोपड़ी में दिखे राजकुमार...
खड़ंजें पर चली सैंडिल
पगडंडियों पर दौड़ी साइकिल...
कीचड़ में खिला कमल
हाथ का मिला साथ
पर अफसोस...
फिर छा जाएगी मायूसी
फिर सूनी हो जाएगी झोपड़ी
फिर उखड़ जाएंगे खड़ंजें
छूट जाएगा हाथ का साथ
फिर आम आदमी रह जाएगा 'आम'
खास यूं ही बना रहेगा खास
(जैसा कि अभी तक का अनुभव रहा ...