Pillar of True Journalism to save Public Domain

Saturday, December 24, 2011

बज गई रणभेरी, चढ़ गई त्योरियां

बज गई चुनावी रणभेरी चढ़ गईं उनकी त्योरियां... नाचने लगी उनकी आंखें बजने लगे उनके गाल... बढ़ गई गरीबों की पूछ आम आदमी हुआ खास... बहुर गए इनके दिन झोपड़ी में दिखे राजकुमार... खड़ंजें पर चली सैंडिल पगडंडियों पर दौड़ी साइकिल... कीचड़ में खिला कमल हाथ का मिला साथ पर अफसोस... फिर छा जाएगी मायूसी फिर सूनी हो जाएगी झोपड़ी फिर उखड़ जाएंगे खड़ंजें छूट जाएगा हाथ का साथ फिर आम आदमी रह जाएगा 'आम' खास यूं ही बना रहेगा खास (जैसा कि अभी तक का अनुभव रहा ...

Friday, December 16, 2011

औकात

रमेश शापिंग कर रहा था। अचानक उसकी नजर एक महिला से टकराई। दोनों ठिठक गए। वह मोना थी। रमेश को देखते ही वह बोली, 'ओह माई गॉड, रमेश तुम? कैसे हो? इट्स सरप्राइज फॉर मी। इनसे मिलो, ये मेरे हसबैंड सोहन हैं। बहुत बड़ी कंपनी में काम करते हैं।' मोना बोलती जा रही थी, रमेश उसकी बातें गौर से सुन रहा था। इस बीच हैरान सोहन पत्नी की बात बीच में ही काटते हुए बोल पड़ा। सोहन बोला, 'सर...आप...यहां? कोई जरूरत थी तो बता दिया होता, किसी को भी भेज कर सामान मंगवा देता। अब आपको इतनी जहमत उठाने की क्या आवश्यकता थी।' अपनी पत्नी की तरफ तुरंत मुड़ते ही सोहन उत्साहित होकर बोला, 'मोना, ये मेरे बॉस हैं। पांच हजार करोड़ सालाना टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक होते हुए भी सर बहुत...

Sunday, November 27, 2011

ऐसे ही बचते रहे 'युवराज' तो बची हुई सीटें ही आएंगी 'हाथ'!

गरीबों के मसीहा। मजलूमों के मददगार। आम के साथ इनका 'हाथ'। भ्रष्टाचार और अत्याचार देख तमतमाया हुआ एंग्री यंगमैन। कुछ इसी अंदाज में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जब पूर्वांचल की यात्रा पर निकले तो लगा कि कांग्रेस की काया पलट हो जाएगी। आम आदमी की सहानुभूति मिलेगी। पर यह क्या आम आदमी की बात करने वाले राहुल ने अपनी पूरी यात्रा के दौरान एक बार भी उनकी बात नहीं की। उनसे जुड़े मुद्दों की बात नहीं की। उनसे बात नहीं की।  राहुल ने बात की तो राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की। सपा, बसपा और भाजपा की। उनकी कमियों की। एक बार भी आम आदमी के दुखों की बात नहीं की, बल्कि उनकी दुखती रग पर प्रहार किया। राहुल ने जब भी गरीबों का गाल सहला कर उनका भरोसा जीतने की कोशिश...

Friday, November 25, 2011

थप्पड़...ना 'ये' भगत सिंह की 'क्रांति' है, ना 'वो' बापू की 'गांधीगीरी'!

‘वह भ्रष्ट है। मैं यहां मंत्री को थप्पड़ मारने ही आया था। वे सभी भ्रष्ट हैं। मैंने ही रोहिणी कोर्ट में सुखराम को भी मारा था। मैं सिख हूं, चप्पल नहीं मारूंगा। सिर्फ भाषण देते हो। भगत सिंह को भूल गए जिसने कुर्बानी दी। मारो-मारो मुझे खूब मारो।....पागल हूं मैं.....। इनके पास घोटाले के अलावा कुछ नहीं है। मैं गलत नहीं हूं।’ यह कहते हुए ट्रांसपोर्ट व्यवसायी हरविंदर सिंह ने एनडीएमसी सेंटर में आयोजित समारोह में भाग लेने के बाद लौट रहे 71 वर्षीय शरद पवार पर हमला बोल दिया। अचानक हुए वार से वे बच नहीं सके। संतुलन भी खो बैठे। जैसे-तैसे संभले और रवाना हो गए। इस थप्पड़ से पूरा देश गूंज उठा। हर तरफ इसकी चर्चा होने लगी। जहां नेताओं इसकी जमकर भर्त्सना की, वहीं...

Monday, November 21, 2011

हम जाहिल हैं, आरोप अच्छा है: आशुतोष

मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा है। वह अपनी भूमिका ठीक से निभाएगा तभी सरकारों और नेताओं को तकलीफ होगी। नेताओं को तकलीफ होगी तो लोकतंत्र जिंदा रहेगा। वरना नेता तो चाहते हैं कि लोकतंत्र सोता रहे।  नया-नया जर्नलिज्म में आया था। अयोध्या का आंदोलन उफान पर था। बनारस में दंगे हुए थे। मुझे कवर करने के लिए भेजा गया था। वहां कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत हो रही थी। वे कह रहे थे कि पत्रकारिता की नई गंगा अब बनारस से निकलेगी। दंगों के दौरान की रिपोर्टिंग देख मैं पहले से ही सदमे में था। सब के सब उग्र हिंदूवादी रंग मे रंगे थे।  रिपोर्ट के नाम पर अफवाहें खबर बन रही थीं। दिल्ली से जाने के बाद उन खबरों की पुष्टि मैंने कई बार करने की कोशिश की। हर बार प्रशासन...

Friday, November 18, 2011

आपको पता है कि क्या होती है नौटंकी?

'नौटंकी मत करो' ऐसा बार-बार लोगों को बोलते हुए आपने सुना होगा। पर क्या आपको पता है क्या होती है नौटकी? आइए हम आपको बताते हैं। नौटंकी एक जीवंत, लोकप्रिय और प्रभावशाली लोककला है। यह कला जन-मानस से जुड़ी है। इस विधा में अभिनय थोड़ा लाउड किया जाता था। ठीक पारसी थियेटर की तरह। विषय कई बार बोल्ड रखे जाते थे, डायलॉग तीखे चुभने वाले होते थे। समयांतर इस विधा में विकृति आ गई औऱ इसे अश्लीलता का भी पर्याय माना जाने लगा। विद्वानों के मुताबिक, यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ। किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस सट्टक को नाटक का एक भेद माना...

Monday, November 14, 2011

बाल दिवस: कितनी हकीकत, कितना फसाना

आज पूरे देश में बाल दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुविधासंपन्न बच्चों के लिए तो आज का दिन वाकई ख़ास है. पर उन बच्चों का क्या, जो हर सुविधा से महरूम हैं। उनका भोला चेहरा जब हमारी तरफ आशा की नज़र से देखता है तो क्या हमारे मन में टीस नहीं उठती ?  चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं। कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है।  यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है। इनमें से अधिकांश...

Monday, October 24, 2011

कर्नल गद्दाफी और विद्रोहियों के आतंक की कहानी, सुनिए इस गवाह की जुबानी!

लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी की मौत की पूरी दुनिया में चर्चा है। सभी इस पर अलग अलग तरह सोच रहे हैं। कोई इसे तानाशाही का अंत कह रहा है तो कोई इसे तेल का खेल। कुछ लोगों का कहना है कि पश्चिमी देशों ने तेल के कुओं पर अधिकार पाने के लिए गद्दाफी विरोधी लोगों को सह दिया था। कुछ लोगों का कहना है कि गद्दाफी के तानाशाही रवैये के कारण वहां के लोगों में गुस्सा था। जिसकी परिणती उसके मौत के रूप में हुई। लीबिया के तानाशाह की मौत से कायम हुए शांति की वजह से केवल लीबियाई ही खुश नहीं है, बल्कि यह लहर यूपी तक पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के रहने वाले 34 वर्षीय अरविंद जायसवाल को गद्दाफी की मौत से न तो खुशी है ना गम। उनको तो वहां फैले अराजकता...

Tuesday, October 18, 2011

मुझे शर्म आती है...

मुझे कभी कभी शर्म आती है। इस पेशे पर। अपने दोस्तों पर। लोगों पर। प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल कई दिनों से गम्भीर रूप से बीमार हैं। उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक उनकी हालत नाजुक है। ऐसे महान साहित्यकार की गंभीर तबियत खराब है, लेकिन अभी तक यह नेशनल मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं बन पाई है।  भला बने भी कैसे इस स्टोरी पर टीआरपी (टीवी रेटिंग) और पेजव्यू (वेबसाइट में खबरों की रेटिंग) कम आने का जो खतरा है। मेरे हर मीडियाकर्मी मित्र को पता है कि ऐसी खबरें मुनाफेदार नहीं होती। चलिए मान लिया कि मीडिया को इस खबर से मुनाफा नहीं था इसलिए इसका महत्व नहीं दिया। लेकिन उन लोगों का क्या जो मीडिया से जुड़े नहीं हैं। जो खबरें...

Sunday, October 16, 2011

30000 'बच्चों' के इस बाप की कहानी वाकई में है दिल छू लेने वाली!

यूपी के बुंदेलखण्ड में रहने वाली इस शख्स की कहानी दिल छू लेने वाली है। बेटे की मौत के बाद तड़प रहे इस शख्स ने गम को खुशी में बदलने का एक नायाब तरीका अपनाया। फिर क्या था, उसके बाद उसके एक नहीं, दो नहीं, पूरे 30 हजार बच्चे हो गए। जी हां, उसने अपनी सूखी जिन्दगी में संकल्प लिया धरती को हरा-भरा बनाने का। चित्रकूट के रहने वाले भैयाराम अब चालीस बसंत पार कर चुके हैं। वह पिछले तीन सालों से जिले के पहरा वनक्षेत्र के करीब 30,000 वृक्षों की अपनी संतान की तरह सेवा और देखरेख कर रहे हैं। झोपड़ी में रह रहे भैयाराम पेड़ों को काटने वाले चोरों से उनकी रक्षा करने से लेकर उनकी निराई-गुड़ाई, कीड़ों से बचाव और सिंचाई तक का पूरा ख्याल रखते हैं। उनके मुताबिक,...

Tuesday, October 11, 2011

आडवाणी जी...कहीं ये प्रधानमंत्री बनने की आखिरी कोशिश तो नहीं!!!

महा'रथी' आडवाणी की एक और रथ यात्रा... भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बिहार के सिताबदियारा से अपनी 'जन चेतना यात्रा' की शुरुआत कर दी है। यात्रा से पहले ही राजनीतिक दांव पेंच और प्रधानमंत्री बनने के कयासों में उलझे आडवाणी ने साफ करना चाहा कि देश में सत्ता परिवर्तन से अधिक व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है और इस यात्रा का उद्देश्य आम जनमानस के मन में भ्रष्टाचार के खिलाफ चेतना पैदा करना है। उन्होने साफ किया कि इस यात्रा की शुरुआत भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की जा रही है। देश में सत्ता परिवर्तन से अधिक व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है। चलिए मान लेते हैं आडवाणी जी की बात। वह सत्ता के लिए नहीं व्यवस्था के लिए यात्रा निकाल रहे...

BIRTH DAY SPECIAL: कवि के घर पैदा हुआ कलाकार

सन्‌ 1942 की सर्दियों में इलाहाबाद में जन्मे बिग बी की पूरे फिल्म इंडस्ट्री में तूती बोलती है। बचपन में उनके साथ एक बड़ी मनोरंजक घटना घटी थी। बात तब की है जब वह ढाई साल के थे। उस समय अमिताभ अपने माता-पिता के साथ नाना के घर जा रहे थे। तभी लाहौर रेलवे स्टेशन पर अपने माता-पिता से बिछड़कर ओवरब्रिज पर पहुंच गए। उस समय मां तेजी टिकट लेने गई थीं और अमित पिता का हाथ छूट जाने से भीड़ में खो गए। मां-बाप के होश उड़ गए। बाद में अमिताभ मिल गए। सांड ने ऐसा दी पटखनी कि बन गए हिम्मत वाले अमिताभ बच्चन की बचपन की फोटो खानदानी परंपरा के अनुसार अमित का मुंडन संस्कार विंध्य पर्वत पर देवी की प्रतिमा के आगे बकरे की बलि के साथ होना था, लेकिन बच्चनजी ने...

Monday, October 10, 2011

कहां तुम चले गए...

गजल सम्राट जगजीत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में दम तोड़ दिया। करीब दो सप्ताह पहले ही उन्हे यहां भर्ती कराया गया था। उनकी आखिरी सांस के साथ ही मौशिकी की दुनिया का एक कालखंड समाप्‍त हो गया।  जगजीत जिंदगी के आखिरी वक्‍त तक गाते रहे। जिस दिन उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती कराया गया, उस दिन भी मुंबई में उन्‍हें एक कार्यक्रम देना था। 70 साल के जगजीत सिंह को उस दिन पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली के साथ एक कंसर्ट में हिस्सा लेना था।  गजल गायकी को नया अंदाज देने के लिए जगजी‍त सिंह को हमेशा याद किया जाता रहेगा। जगजीत सिंह ने 1999 में आई फिल्‍म ‘सरफरोश’ के गीत ‘होश वालों को खबर क्‍या...’ को आवाज...

Saturday, October 8, 2011

मौत के क्रूर पंजों में जकड़ा मासूमों का जीवन, खत्म हो चुकीं हैं 400 जिंदगियां

पूर्वी यूपी में अधिकतर मां-बाप की रातें आंखों में कट जा रही है। मन बैचेन है। डर सता रहा है कि कहीं 'नौकी बीमारी' उनके लाल को न निगल जाए। डर इतना कि लाडले को छींक भी आ जाए तो कंठ सूख जाता है। ऐसा हो भी क्यों ना। पूरे इलाके में मौत बनकर तांडव मचाने वाली नौकी बीमारी यानी जापानी इंसेफ्लाइटिस ने इस साल अब तक 400 मासूम बच्चों की सांसे छीन ली है। इतने ही करीब अस्पताल में भर्ती हैं। अकेले गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में ही करीब 2500 मरीज आ चुके हैं। बताते चलें कि पूर्वी यूपी के गोरखपुर और आसपास के जिलों में 1978 से इंसेफ्लाइटिस महामारी के रूप में कहर ढा रही है। इसके सबसे आसान शिकार मासूम बच्चे है। मरने वालों से कई गुना ज्यादा विकलांग और मानसिक...

Thursday, October 6, 2011

एक लड़की के 'दर्द' की दर्दनाक कहानी, सुन आंखे छलक जाएंगी आपकी!

दर्द जब बेदर्द बन जाता है तो इंसान जीने की चाह छोड़ देता है। कोई शख्स कितना भी हिम्मती क्यों ना हो, लेकिन असहनीय दर्द को सहने की बजाय मौत को गले लगाना उचित समझता है। कुछ ऐसा ही हाल है कानपुर की रहने वाली अलका का। एप्लास्टी एनीमिया नामक बीमारी से पीड़ित 21 साल की एक अलका ने कोर्ट से इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि सरकार या तो उसका इलाज कराने में मदद करे या फिर उसे इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दी जाये। कानपुर शहर के पहाड़ी लाइन में झुग्गी में रहने वाली अलका नौ साल से एप्लास्टी एनीमिया से पीड़ित है। उसके पिता की मौत 1998 में हो चुकी थी। घर पर उनकी बूढ़ी मां सूरजमुखी और एक भाई ब्रज बिहारी रहते हैं। भाई ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाता...

Wednesday, October 5, 2011

ये है माया की 'माया': जिसने भी लगाई इज्जत की बाट, उसकी खड़ी कर दी खाट!

यूपी की मुख्यमंत्री मायावती का तेवर इन दिनों देखते ही बन रहा है। पिछले कुछ महिने के हालात पर गौर करें तो माया के फैसलों ने न केवल लोगों को चौंकाया है, बल्कि विपक्षी पार्टियों के हाथ से भी चुनावी मुद्दा करीब छीन लिया है। हाल ही में माया ने माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र तथा श्रम मंत्री बादशाह सिंह को मंत्री पद से तब तक के लिए हटा दिया है, जब तक की ये दोनों मंत्री जांच में निर्दोष साबित नहीं हो जाते। इससे पहले भी वह कई मंत्रियों, बसपा कार्यकर्ताओं और अधिकारियों को दंडित या पदच्यूत कर चुकीं हैं। चुनाव से एन वक्त पहले मायावती का यह रुख चौंकाने वाला है। कोई इसे ऑपरेशन क्लीन का नाम दे रहा है, तो कोई राजनीतिक स्टंट।जिसने भी लगाई इज्जत की वाट,...

Saturday, June 18, 2011

राहुल बाबा तुम कहां हो???

राहुल गांधी इन दिनों नजर नहीं आ रहे हैं। पता नहीं कहां चले गए। गरीबों और कमजोरों पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन राहुल बाबा के कानों तक उनकी आवाज शायद नहीं पहुंच रही है। जब भट्टा-पारसौल में यूपी पुलिस ने लोगों के साथ अत्याचार किया था, तो झट से राहुल बाबा लोगों से मिलने गांव चले गए। उनके साथ चौपाल पर अनशन किया। गांव में धारा 144 का जमकर विरोध किया। यूपी सरकार से पूछा कि धारा 144 क्यों लगाया।वहीं जब रामलीला मैदान में अहिंसात्मक आंदोलन और सत्याग्रह कर रहे लोगों पर लाठियां बरसाई गईं। लोगों के हाथ-पांव तोड़ा दिए गए। सो रहे लोगों पर गोलियां बरसाई गईं। तब हमारे राहुल बाबा कहां थे? जब एक वृद्ध लाठी की मार खाने के बाद अस्पताल में दम तोड़ रही थी तब राहुल...

Friday, June 3, 2011

आम आदमी की यह अजब दास्तान

मैंने तो सोचा था कि आम आदमी वह है, जो पैसों की गर्मी से फैलता और कमी से सिकुड़ता है। जो महंगाई की आहट से कांप जाता है। आम आदमी तो दुखों का ढेर है। अभावों का दलदल है। मुकम्मल बयान है, चेहरे पर दर्द का गहरा निशान है। तभी एक बात सोचकर मुस्करा दिया। किसी ने कहा था: फलों का राजा आम होता है। धत्, भला राजा भी कहीं ‘आम’ हो सकता है!उस दिन भी रोज की तरह बगीचे में टहल रहा था। मन में अजब बेचैनी थी। तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। तभी मेरी नजर एक पके आम पर पड़ी। आम को देखते ही जाने क्यों आम आदमी का ख्याल आ गया। भाषण, लेख, हिदायतों और नसीहतों के बीच बचपन से ही आम आदमी के बारे में सुनता आ रहा हूं।लगा कि भले बदलाव की तेज आंधी ही क्यूं न चले, पर आम आदमी के हाथ न...

Monday, May 16, 2011

मीडिया में गैर-हाजिर किसान

काश! 'सत्य सांई' होते 'टिकैत'इस शीर्षक को पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि मैं कैसी बेतुकी बातें कर रहा हूं। भला महेंद्र सिंह टिकैत को सत्य सांई बनने की क्या जरूरत है। टिकैत एक किसान नेता थे और सांई प्रख्यात संत। सांई में आस्था रखने वालों में बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल थी। वहीँ टिकैत अभाव में जी रहे किसानो क़ि एकमात्र आवाज़ थे। सांई लोगों क़ि नज़रो में भगवान और टिकैत मामूली नेता किसान। फिर एक किसान को संत बनने की क्या जरूरत है। पर जरूरत है।देश के दिग्गज किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का निधन हो जाता है। उनके निधन की खबर शायद ही किसी न्यूज चैनल की ब्रेकिंग खबर बन पाती है। किसी ने भी इस खबर को अपने तेज-20 या 100 में जगह देना उचित नहीं समझा। कहीं खबर चली...

Monday, May 9, 2011

ओसामा के माफिक 'तेवतिया' के पीछे पड़े माया के वर्दीवाले गुंडे

वेस्ट यूपी के ग्रेटर नोएडा, अलीगढ़, मथुरा और आगरा के किसान हक के हवन कुंड में जल रहे हैं। खाकी खून की प्यासी हो गई है। बच्चे, बूढ़े, जवान सब पर वर्दी कहर बरपा रही है। जमीन की जंग में समूचे खेत और गांव जलाए जा रहे हैं। सियासत के सपेरें, तपते हुए इस मामले पर भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने भागे-भागे आ रहे हैं। यहां गिरफ्तारी देने की होड़ मची है। ऐसा लग रहा है, जैसे गिरफ्तारी के बाद मिलने वाले प्रसाद से इन सभी को मोक्ष मिल जाएगा।इनाम की घोषणा कर ओसामा की माफिक यूपी पुलिस कथित किसान नेता 'तेवतिया' को ढूढ़ रही है। अपनी मांग को लेकर विद्रोह करने वाले शख्स को अपराधी घोषित कर दिया गया है। इस शख्स की पत्नी का कहना है कि, उसका पति अपराधी नहीं समाजसेवी हैं। यदि वह अपराधी हैं, तो अन्ना और केजरीवाल क्या हैं? पुलिस इलाके में डेरा डाले हुए है। उनके आतंक का आलम यह है कि किसान गांव छोड़कर भाग गए हैं। इस रवैये...

Wednesday, April 27, 2011

जर्जर योजनाओं से हिचकोले खाता विकास का पहिया

अपने एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए बिहार के गोपालगंज जिले में गया हुआ था। रात के तीन बज रहे थे। दोस्त अपने जीवन संगनी संग सात फेरे ले रहा था। उसका ससुराल हजारों बल्ब की रौशनी में जगमगा रहा था। हलवाई सुबह के नाश्ते का इंतजाम करने में लगे थे। मैं शोर से थोड़ा निजात पाने के लिए मंडप से बाहर निकला।सड़के के उस पार लालटेन की धीमी रौशनी टीमटीमा रहीथी। साथ ही टार्च की हल्की लाइट में कोई कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। कौतुहलवश मैं उस रौशनी की तरफखिंचता चला गया। पास जाने पर देखा कि एक 55 साल के व्यक्ति बड़े-बड़े पन्नों पर कुछ लिख रहे थे। पूछने परपता चला कि वह गांव के स्कूल में टीचर हैं। और जनगणना से संबंधित काम कर रहे हैं।पूरी रात काम करने वाले...
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